यह था मामला
सगरामपुरा के राजेश्री हॉल में 27 से 30 दिसम्बर, 2001 तक माइनोरिटी एज्युकेशन बोर्ड के बैनर तले सेमिनार का आयोजन किया था। इस दौरान राज्य के तत्कालिन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक की ओर से तत्कालिन अठवा थाने के निरीक्षक एम.जे.पंचोली को फैक्स से सूचना दी गई कि राजेश्री हॉल में एज्युकेशनल सेमिनार के बहाने प्रतिबंधित संगठन सीमी के कार्यकर्ता इकठ्ठे हुए है। पुलिस ने देर रात छापा मारकर 124 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने यहां से सीमी से संबंधित कुछ पैम्फलेट और कागजाद भी बरामद किए थे। पुलिस ने अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट की धाराओं के तहत अभियुक्तों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
सलाबतपुरा के अलिफ माजीद मंसुरी और ए.आर.कुरैशी ने बुक करवाया था हॉल
अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद की गई जांच में पता चला था कि माइनोरिटी एज्युकेशन बोर्ड के सेमीनार के लिए सलाबतपुरा क्षेत्र निवासी अलिफ माजीद मंसुरी और ए.आर.कुरैशी ने 27 से 30 दिसम्बर, 2001 तक राजेश्री हॉल बुक करवाया था।
बरी होने के बाद कहा- न्याय तो मिला,लेकिन बहुत कुछ खोया
कोर्ट के फैसले के बाद बरी होने के बाद जिन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज करने का आरोप था उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 20 साल बाद न्याय मिला और सच्चाई की जीत हुई है। साथ ही विलंबति न्याय को लेकर भी उन्होंने सिस्टम के खिलाफ सवाल खड़े किए। औरंगाबाद के जीयासुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि 20 सालों में उन्होंने काफी कुछ खोया और सहन किया। झूठे आरोपों के साथ एफआइआर दर्ज करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ क्यां कोई कार्रवाई होगी यह सवाल भी उन्होंने खड़ा किया।
केन्द्र सरकार की अनुमति बिना ही की थी कार्रवाई
बचाव पक्ष के अधिवक्ता अब्दुल वहाब शेख ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे सच्चाई की जीत बताया। उन्होंने कहा कि अनलोफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट की धाराओं के तहत कार्रवाई करने के लिए केन्द्र सरकार से अनुमति लेना जरूरी होता है, लेकिन इस मामले में पुलिस ने सिर्फ राज्य सरकार की अनुमति ली थी। कोर्ट के समक्ष जब यह बात आई तो कोर्ट ने भी माना कि कार्रवाई ही गलत तरीके से की गई और इसे अनलॉफुल एक्टिविटीज का मामला नहीं माना जा सकता।