सूरतPublished: Oct 13, 2022 09:57:18 pm
Divyesh Kumar Sondarva
नवरात्र के नौ दिन मिट्टी के घड़े की 'गरबा' के रूप स्थापना कर देवी को आराधना की जाती है। दशहरे पर इस 'गरबा' को तापी में या फिर मंदिरों में विसर्जित किया जाता है। सूरत के गोपीपुरा स्थित श्री चंद्र अशोक सोम करुणा चकली घर संस्था पिछले नौ सालों से विसर्जित 'गरबा' को चिड़ियाओं के घर बनाकर उसका रीसर्जन कर रही है। धार्मिक आस्था और प्रकृति से विद्यार्थियों को अवगत करवाने के उद्देश्य से इन 'गरबा' में से चिड़ियाओं का घर बनाने का स्कूलों में प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
नवरात्र में 'गरबा' के अंदर अखंड दीप जलाकर देवी की आराधना की जाती है और दशहरे पर 'गरबा' को विसर्जित कर दिया जाता है। पिछले कुछ सालो से सूरत की जनता तापी को शुद्ध रखने के लिए जागरूक हुए है। इसलिए अब गणेशजी, दशामा, कृष्ण और अंबे की प्रतिमा को तापी में विसर्जित नहीं किया जाता। इन प्रतिमाओं को डुमस के समुद्र या फिर कुत्रिम तालाब में विसर्जित किया जाने लगा है। देवी का 'गरबा' भी विसर्जित करने की प्रथा है। तापी को शुद्ध रखने के उद्देश्य से नौ साल पहले श्री चंद्र अशोक सोम करुणा चकली घर संस्था ने 'गरबा' BEST FROM WEST को एकत्रित कर उसमे से चिड़ियाओं के घर बनाना शुरू किया। चिड़ियाओं के लिए घर बनाकर इन्हें नि:शुल्क वितरित किया जाता है।