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बड़ी चिंता – हाइरिस्क जोन से बाहर नहीं निकल रही स्लम बस्तियां

locationसूरतPublished: May 29, 2020 09:33:01 pm

जागरुकता बढ़ाने पर फोकस, उनकी भाषा में हो रहा संवाद, समाज के प्रभावशाली लोगों को सौंपा जिम्मा

बड़ी चिंता - हाइरिस्क जोन से बाहर नहीं निकल रही स्लम बस्तियां

बड़ी चिंता – हाइरिस्क जोन से बाहर नहीं निकल रही स्लम बस्तियां

सूरत. तमाम प्रयासों के बावजूद लिंबायत जोन समेत शहर की स्लम बस्तियां अब तक कोरोना संक्रमण के हाइ रिस्क जोन से बाहर नहीं निकल पाई हैं। इसे देखते हुए मनपा प्रशासन ने इन इलाकों में जागरुकता अभियान को और तेज करने की जरूरत पर बल दिया है। लोगों से उन्हीं की भाषा में संवाद करने के साथ ही उनके समाज के प्रभावशाली लोगों को यह जिम्मा सौंपा गया है कि वे भी उन्हें कोरोना संक्रमण के प्रति जागरूक करें।
शहर में मिले कोरोना संक्रमितों की संख्या के मामले में लिंबायत जोन के साथ ही अब कतारगाम जोन ने भी अपना ट्रेंड बदला है। इसके साथ ही शहर के स्लम इलाकों में भी कोरोना संक्रमण का प्रसार थमने का नाम नहीं ले रहा। स्लम बस्तियों में बड़ी तादाद में मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेशों से सूरत आए लोग रह रहे हैं। इन इलाकों में कोरोना संक्रमण के फैलने की एक बड़ी वजह लोगों में इसे लेकर जागरुकता का अभाव भी है।
इसे देखते हुए मनपा प्रशासन ने उनकी भाषा में ही संवाद साधने की कवायद की है। इसके लिए जहां उनकी भाषाओं में पोस्टर छपवाए हैं, 70 से अधिक टैम्पो स्लम बस्तियों में जाकर वहां रह रहे लोगों की भाषा में ही कोरोना के प्रति जागरुकता का संदेश दे रहे हैं। इन संदेशों और पोस्टरों को तैयार करने के लिए मनपा प्रशासन ने विभिन्न प्रदेशों से सूरत आए शिक्षित तबके की मदद ली है, जिससे लोगों तक सहजता से अपनी बात पहुंचाई जा सके।
मनपा प्रशासन ने लोगों तक अपनी पैठ बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर समाज के प्रभावशाली लोगों से भी बातचीत की है। उन्हें भी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि अपने समाज के बीच जाकर कोरोना संक्रमण की भयावहता को समझाने के साथ ही इससे बचने के उपायों के लिए तैयार करें। मनपा प्रशासन का मानना है कि अपने बीच के लोगों से अपनी भाषा में कोरोना की विकरालता का समझना अन्य भाषाभाषियों के लिए ज्यादा सहज होगा।

बचाव ही है इलाज

संक्रामक रोगों से बचाव ही पहला इलाज है। यह बात लोगों तक पहुंचाने के लिए कोविड कमांडो टीम को भी स्लम इलाकों में भेजा जा रहा है। इसमें भी इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि वालंटियर जिस समाज से जुड़े हैं, उन्हें उसी समाज के बीच भेजा जाए। कोरोना योद्धा समिति के वालंटियर लोगों के बीच जाकर बचाव के उपाय ही नहीं बता रहे, लोगों को बार-बार हाथ धोने की सलाह भी दे रहे हैं। मनपा प्रशासन ने वाश बेसिनों की संख्या भी स्लम में बढ़ा दी है। लोगों के बीच जाकर उन्हें बताया जा रहा है कि व्यवहार में बदलाव किए बगैर कोरोना को हरा पाना बेहद मुश्किल है। मौजूदा वक्त में लोगों को अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा।

मिनी इंडिया है सूरत

कारोबारी नगरी सूरत देश के रोजगार देने वाले शीर्ष शहरों में शामिल है। देश के कमोबेश हर राज्य के लोग रोजगार के लिए सूरत में रह रहे हैं। इसी वजह से सूरत को मिनी इंडिया भी कहा जाता है। सूरत महानगर पालिका देश की अकेली ऐसा मनपा है, जहां विभिन्न प्रदेशों से आए लोगों के बच्चों के शिक्षण के लिए उनकी भाषा में प्राथमिक स्कूलों का संचालन हो रहा है।

आरोग्य सेतु डाउनलोड करने की अपील

सूरत में अब तक 20 फीसदी से भी कम लोगों ने आरोग्य सेतु एप्लिकेशन डाउनलोड की है। स्लम इलाकों में यह एप्लीकेशन डाउनलोड करने वालों की संख्या लगभग नगण्य है। लोगों के बीच जा रहे वालंटियर उन्हें अपने मोबाइल पर आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करने की भी अपील कर रहे हैं। जिन्हें मुश्किल आ रही है, उनके मोबाइल पर एप डाउनलोड कर उसे ऑपरेट करने की ट्रेनिंग भी मौके पर ही दी जा रही है।

इसलिए करना होगा बदलाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना से बचाव के लिए साबुन से बार-बार हाथ धोने की सलाह दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि साबुन से बार-बार हाथ धोने से संक्रमण को दूर रखा जा सकता है। साथ ही हाथों को बार-बार चेहरे पर लाने और आंख व नाक से दूर रखने की सलाह भी दी जा रही है। बार-बार हाथ धोने से बचना और हाथ को चेहरे से दूर न रख पाना आम आदमी के व्यवहार का हिस्सा बन गया है। लोगों के बीच जाकर वालंटियर व्यवहार में इसी बदलाव की सीख दे रहे हैं।
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