शरीर आवश्यकता और मन है आकांक्षा-पुलकसागर
सूरतPublished: Aug 20, 2019 08:46:45 pm
चातुर्मास वर्षायोग समिति की ओर से आयोजित ज्ञानगंगा महोत्सव
शरीर आवश्यकता और मन है आकांक्षा-पुलकसागर
सूरत. भारत गौरव मुनि पुलकसागर ने मंगलवार सुबह प्रवचन में कहा कि मन बहुत चंचल होता है। मनुष्य नहीं चाहते हुए भी मन के वशीभूत हो जाया करता है। मन बिना पेंदे की बाल्टी समान है, जो संतोषरूपी पेंदा लगाने पर ही भर सकता है। तनाव-चिंता उसको होती है, जो मन के आडंबर को पूरा करने की आकांक्षा में जिया करता है। आवश्यकता में जियो, आकांक्षा में मत जियो क्योंकि शरीर आवश्यकता है और मन आकांक्षा। मुनि शहर के परवत पाटिया में श्रीचंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के पास चातुर्मास वर्षायोग समिति की ओर से आयोजित ज्ञानगंगा महोत्सव में बोल रहे थे।
मुनि ने आगे बताया कि भूख लगने पर शरीर को रोटी की आवश्यकता होती है, लेकिन मन खाने नहीं देता। वह शर्त पर शर्त लगाते रहता है। मन के मुताबिक जीवन जीने वाला पछताता है। दुखी होने का सबसे बड़ा कारण है तू वहीं करता है जो तू चाहता है। जिस दिन तू वह करना शुरू कर दोगे, जो ईश्वर चाहता है, उस दिन से वही होगा जो तू चाहता है। मनुष्य के दिमाग में गलत विचार कभी भी उठ सकता है। गलत विचार उठने में देर नहीं लगता है। यदि तुरंत गलत विचार को नहीं मिटाया गया तो जिंदगी को बर्वाद कर देती है। भगवान ने दो हाथ का पेट भरने के लिए दो हाथ दिए है। परंतु मन का पेट बहुत बड़ा होता है वह कभी नहीं भरता है। दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति वह है जिसे तकिये पर सिर रखते ही नींद आ जाए। धरती बिछाओ और आकाश ओढ़ लो, इससे बड़ा सुख और कोई नहीं। चिंतारूपी पक्षी को दिमाग में घोंसला मत बनाने दो। चिंता-तनाव बीमारियों की जड़ हैं। मंगलवार को ज्ञानगंगा महोत्सव के 17वें दिन मुनि पुलकसागर ने प्रवचन में यह बात कही। इसकी जानकारी समिति के मीडियाा प्रभारी अशोक बडज़ात्या ने दी है।