सूरत

पानी और हवा दोनों प्रदूषित, जीना हुआ मुश्किल

अधिकांश औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रक मानकों की अनदेखी

सूरतDec 15, 2018 / 10:54 pm

Sunil Mishra

पानी और हवा दोनों प्रदूषित, जीना हुआ मुश्किल


सिलवासा. संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली में केमिकल प्रदूषित और रेड केटेगरी वालेउद्योगों की संख्या बढ़ रही है। विभिन्न औद्योगिक परिसरों में ऑरेंज और रेड केटेगरी के सैकड़ों उद्योग स्थापित हो गए हैं, जिनसे उत्सर्जित अपशिष्ट और खतरनाक प्रदूषण से आसपास के निवासियों का जीना मुश्किल हो गया है।
दादरा नगर हवेली में उद्योग स्थापना के शुरुआती वर्ष 1986 में प्रदूषित उद्योगों को लगाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन बाद में धीरे-धीरे पिपरिया, डोकमर्डी, आमली, दादरा, नरोली, खड़ोली, सिली, मधुबन, रखोली, दपाड़ा, सुरंगी, खेरड़ी सहित सभी औद्योगिक इलाकों में प्लास्टिक और केमिकल उद्योगों का जाल बिछ गया। उद्योगों में संश्लेषण के दौरान निकलने वाला प्रदूषित जल, चिमनियों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनेाक्साइड, कार्बन कण, नाइट्रोजन ऑक्साइड लोगों की परेशानी बढ़ाने लगे। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में एक सौ से अधिक तेलशोधक, सूती उद्योग, रंगाई, लौह व एल्यूमिनियम, आयरन व स्टील के उद्योग प्रदूषण के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार हैं।
 

प्रदूषित अपद्रव्य छोड़ रहे सीधे नदी-नालों में
प्रदेश में अधिकांश उद्योग नदी-नालों के किनारे चल रहे हैं। पिपरिया, डोकमर्डी, आमली, नरोली, दादरा में उद्यमी प्रदूषित अपद्रव्य सीधे नदी-नालों में छोड़ देते हैं, जिससे पेयजल दूषित हो चुका है। कई परिसरों में तो भूमिगत जल सिंचाई लायक भी नहीं रहा। पिपरिया, आमली उद्योग विस्तार संलग्न आमली, उलटन फलिया, दयात फलिया, अंबेडकर नगर की 60 से ज्यादा सोसायटियां हैं, जिसमें 40 हजार से अधिक आबादी बसी है। रात के समय उद्योगों द्वारा जहरीली गैसों का उत्सर्जन किया जाता है। पिपरिया खाड़ी का जल बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। भूजल में प्रदूषण बढऩे से आसपास के किसानों ने खेती बंद कर दी है। पीसीसी उद्योगों को प्र्रतिवर्ष नवीनीकरण प्रमाण पत्र प्रदान करता हैै। अधिकारियोंं से सांंठ-गांठ कर रेड कैटेगरी के उद्योगपति अनापत्ति प्र्रमाण पत्र (एनओसी) हासिल कर लेते हैैं, इसकेे बाद खुलेआम प्र्रदूषण फैैलाते हैं। आसपास बसे निवासियों का कहना है कि प्रदूषित उद्योगों के बारे में पीसीसी को कई बार चेताया है। पीसीसी के अधिकारी बस्तियों की अनेदखी करके आसपास प्रदूषित उद्योगों को अनुमति दे देते हैं। पीसीसी के अधिकारियों का कहना है कि उद्योग स्थापना के दौरान प्रदूषण मुक्ति के संयंत्र अनिवार्य रूप से लगाए जाने का निर्देश है, लेकिन बाद में मेंटीनेस व विद्युत खर्च से बचने के लिए कुछ उद्योगों में प्रदूषण मुक्ति संयंत्र बंद कर दिया जाता है। जांच के दौरान पकड़े जाने से प्रदूषित उद्योगों पर कार्रवाई की जाती है।

श्वसन सहित अन्य रोगों को निमंत्रण
वायु प्रदूषण के कारण श्वसन रोगों को बढ़ावा मिल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार 5 माइक्रोन से छोटे धूल कण और वायु मिश्रित कचरा ब्रोंकाइटिस के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा सिलीकोसिस, लेड पॉयजनिंग, श्रवण शक्ति का ह्नास, त्वचा व पीठ दर्द जैसी शिकायतें देखने को मिलती हैं। प्रदूषित वायु, उद्योगों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन कण, कार्बन मोनोक्साइड आदि फेफड़ों को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। बड़े कण नाक के बालों से अंदर नहीं जा पाते हैं, लेकिन 5 माइक्रोन से छोटे कण श्वसन नली को ब्लॉक कर देते हैं। इससे श्वसन दर बढक़र 25 से 40 प्रति मिनट हो जाती हैं।

ऐसे फैलता है प्रदूषण
-उद्योगों में प्रदूषण मुक्त संयंत्र को चलाने में होने वाले खर्च बचाने के लिए उद्योगपति दूषित गैसों को सीधे वायुमंडल में छोड़ देते हैं। फैक्ट्रियों की चिमनियों पर बैग फिल्टर की अनदेखी की जाती है। बैग फिल्टर से धुएं के कण नीचे बैठ जाते हैं और गैस बेलनाकार बैग से होकर बाहर निकलती है।
-उद्योगों से निकला पानी अपने से 8 गुना अधिक ज्यादा पानी को प्रदूषित करता है। उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ नदी नालों में बिना फिल्टर किए छोड़े जाते हैं। खेरड़ी में डुुंगरखाड़ी व पिपरिया खाड़ी में केमिकल के झाग और अपशिष्ट देखे जा सकते हैं।
-स्टील एवं फर्नीस इंडस्ट्रीज प्रदूषण फैलाने के लिए अधिक जिम्मेदार हैं। पीसीसी द्वारा 17 स्टील उद्योगों को प्रदूषण के लिए चिन्हित किया गया है। इसके बावजूद इन उद्योगों पर रोक नहीं लगी है।
-ग्रामीण क्षेत्रों में कई उद्योग ठोस कचरे को जलाकर वायुमंडल की अशुद्धता बढ़ा रहे हैं।

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