कोविड-19 बनेगा बदलाव की वजह
रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव के बाद कोविड-19 का असर अब विधानसभा उपचुनाव में भी दिखेगा। जरूरी होने पर ही घर से निकलने, मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल जैसी गाइडलाइन के बाद प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं का जुटना भी दोनों दलों के लिए खासा चुनौतीभरा साबित होगा। मौजूदा माहौल में ऐसे हालात में गांव-गांव, गली-गली और घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करना बड़े खतरे का सबब भी बन सकता है। दोनों ही दलों में पार्टी आलाकमान भी नहीं चाहता कि प्रचार के बहाने लोग जुटें और कोरोना के बढऩे का ठीकरा उनके सिर फूटे। इसीलिए इस बार जमीन पर प्रचार का जोर कम ही दिखेगा। लोगों तक पहुंचने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया का जोर ज्यादा दिखेगा। इस बार प्रचार की रणभेरी सोशल मीडिया पर ही बजेगी।दूर-दराज के गांवों में होगी मुश्किल
गुजरात की आठ विधानसभा सीट में कई सीटें आदिवासी बहुल हैं। यहां वर्चुअल, सोशल और डिजिटल पहुंंच बनाना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही खासा मुश्किलभरा साबित होने वाला है। दूरदराज बसे गांवों में नेटवर्क की दिक्कत पेश आएगी और डिजिटल प्रचार की तैयारियां धरी रह जाएंगी। ऐसी स्थिति में मतदाताओं तक पहुंच बनाना दोनों ही दलों के लिए खासा मुश्किलभरा है।बंद कमरों में बन रही रणनीति
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल सोशल मीडिया पर मतदाताओं से संपर्क साधने के लिए रणनीति बनाने में जुटे हैं। दोनों दलों ने अपनी आइटी सेल को इस काम में लगाया गया है। भाजपा जहां इस खेल की पुरानी खिलाड़ी है, विधानसभा 2017 के चुनाव में पाटीदार आंदोलन की आइटी सेल ने कांग्रेस को खासी बढ़त दिलाई थी। हार्दिक की ताजपोशी के बाद कांग्रेस को पाटीदार आंदोलन के समय के आइटी एक्सपर्ट से मदद मिल सकती है।यह है स्थिति
दोनों ही दल फिलहाल संगठन को मजबूत करने पर फोकस कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आए पांच लोगों के टिकट लगभग फाइनल कर लिए हैं। उन्हें भी अपने क्षेत्र में जाकर तैयारियां शुरू करने की हिदायत दे दी गई है। अन्य तीन सीटों पर भी आलाकमान मन बना चुका है, लेकिन आखिरी वक्त में नाम बदलने की गुंजाइश अभी बाकी है। उधर, कांग्रेस को भाजपा की सूची का इंतजार है।