बगैर इ-वे बिल रोजाना कपड़ों के सैकड़ों पार्सलों की लग्जरी बसों से ढुलाई
एक साल पहले तक निजी बसों से तैयार माल के पार्सलों की ढुलाई सिर्फ माल जल्दी पहुंचाने के मकसद से होती थी, लेकिन अब ई-वे बिल के झंझट...

सूरत।एक साल पहले तक निजी बसों से तैयार माल के पार्सलों की ढुलाई सिर्फ माल जल्दी पहुंचाने के मकसद से होती थी, लेकिन अब ई-वे बिल के झंझट से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा है। सूरत से प्रतिदिन गुजरात के अलावा नजदीकी राज्यों के कई शहर-कस्बों तक जाने वाली निजी लग्जरी बसों में सैकड़ों पार्सल की ढुलाई हो रही है।
जीएसटी के बाद कच्चे में व्यापार बंद होगा और ई-वे बिल लागू होने के बाद बगैर बिल माल एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा पाएगा, ऐसा सरकार ने सोचा होगा, स्थानीय कपड़ा मंडी में कच्चे में व्यापार और बगैर बिल माल ढुलाई जारी है। कपड़ा मंडी से प्रतिदिन हजारों-लाखों मीटर कपड़ा बगैर बिल निजी बसों समेत अन्य वाहनों से भेजा जा रहा है। ऐसा ज्यादातर माल 18 से 24 घंटे में संबंधित मंडी तक पहुंच जाता है।
सूरत के कपड़ा बाजार से गुजरात के विभिन्न शहर-कस्बों के अलावा नजदीकी राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश की दर्जनों कपड़ा मंडियों में निजी बसों के माध्यम से तैयार माल के पार्सल भेजे जाते हैं। हालांकि व्यापारी इन बसों में पार्सल के बजाय पोटलों का उपयोग अधिक करते हैं। जानकार बताते हैं कि माल निजी बस या अन्य वाहन से भेजा जा रहा है तो माल का खरीदार साथ होना जरूरी है और बिल भी, लेकिन पोटले, कपड़े की गठरी में रखा माल पहली नजर में यात्री का माल-सामान दिखाई देता है।
निजी बसों और छोटे मालवाहक वाहनों से माल की ढुलाई में जीएसटी, ई-वे बिल की फिक्र नहीं की जाती। नियमों के मुताबिक माल ढुलाई के लिए मालवाहक वाहन की कंपनी के पास जीएसटी नम्बर होना चाहिए। इसके अलावा ई-वे बिल के फार्म ए में माल की डिटेल, क्रेता-विक्रेता, जीएसटी नम्बर, माल की वैल्यू आदि डिटेल होती है। फार्म बी में माल ढुलाई के माध्यम की डिटेल होती है, जिसमें ट्रांसपोर्ट कंपनी, रेलवे या अन्य साधन हो तो ई-वे बिल जरूरी है, लेकिन निजी और सरकारी बसें इनमें दर्ज नहीं होतीं।
राजस्थान समेत अन्य प्रदेशों के विभिन्न शहर-कस्बों से सूरत कपड़ा मंडी में खरीदारी के लिए आने वाले कपड़ा व्यापारी ज्यादातर 50 किलो के वजनी दो-तीन पार्सल निजी बसों में साथ ले जाते हैं। बस ऑपरेटर बस की छत, गैलरी, डिग्गी आदि में पार्सल भर लेते हैं। कई बार तो एक ही बस में पार्सल की संख्या 50 के पार पहुंच जाती है। शहर में निजी बसों के ऑपरेटरों ने माल ढुलाई के लिए कार्गो सेवा भी चला रखी है। ज्यादातर पार्सल का किराया 300 से 500 रुपए है।
बस के अलावा यह भी साधन
सूरत से छह-आठ घंटे की दूरी वाले अहमदाबाद, मुंबई के अलावा इंदौर, जलगांव, उदयपुर आदि शहरों की कपड़ा मंडियों तक माल पहुंचाने के लिए प्रतिदिन छोटे मालवाहक वाहन रात के अंधेरे में दौड़ते हैं और सुबह तक वहां पहुंच जाते हैं। इन मंडियों तक माल पहुंचाने के लिए मालवाहक वाहन प्रतिदिन रात 9-10 बजे के बाद रिंगरोड फ्लाइओवर ब्रिज के नीचे अलग-अलग पिलर के नीचे खड़े रहते हैं। घंटे-डेढ़ घंटे में माल भरने के बाद दर्जनों छोटे मालवाहक वाहन बगैर बिल अलग-अलग शहरों के लिए चल पड़ते हैं।
यह है वजह
बिल वगैरह का झंझट नहीं।
बस ऑपरेटर को अधिक किराया।
रातभर में गंतव्य तक ढुलाई।
निजी वाहनों की रात को जांच का अंदेशा कम।
कच्चे में माल बेचकर मुनाफा एडजस्ट।
नकदी में खरीदारी के दौरान बगैर बिल माल की बिक्री।
दिनेश भारद्वाज
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