गतवर्ष मार्च माह से ही संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली (दानह) के सभी पर्यटन स्थलों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रीष्मकाल के मई-जून में दादरा गार्डन, दुधनी जेटी, मधुबन डेम, सतमालिया और वासोणा लॉयन सफारी में स्थानीय व गुजरात-महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के सैलानियों का मेला लग जाता था। इस सीजन में होटल और ढाबे सैलानियों से भरे नजर आते थे और पर्यटनस्थल के आसपास के कारोबारियों को फुर्सत नहीं मिलती थी, लेकिन वक्त बदलते ही कोरोना से सभी कारोबार बंद हो गए और कईयों ने अपने धंधे बदल लिए।
नाविकों का रोजगार छीना कोरोना संक्रमण से पर्यटन स्थल सूने पड़े हैं। इन पर आश्रित कारोबारियों की हालत बिगड़ गई है। दुधनी जेटी, कौंचा हेल्थ सेंटर में पर्यटकों का पिछले डेढ़ साल से ग्रहण लगा हैं। ग्रीष्म के सीजन में दुधनी जेटी और दादरा गार्डन में दूर-दूर से सैलानी आते हैं, जिससे नाविकों की अच्छी कमाई हो जाती है। बोट चालक रमेश महाकाल ने बताया कि वर्ष के मई-जून में सैलानियों की सर्वाधिक भीड़ रहती हैं, लेकिन पिछले साल की तरह इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण ने उनकी रोजी-रोटी छीन ली हैं।
सतमालिया की रौनक गायब
कोरोना काल में दपाड़ा हिरण्य अभ्यारण्य की रौनक गायब है। इन दिनों सैलानियों से सतमालिया की खुशी दिन दोगुनी-रात चौगुनी रहती है। पिछले सवा साल से कोरोना से सतमालिया की फिजा उदासी में बदल गई है। यहां काम करने वाले रक्षकों ने बताया कि भ्रमण के लिए आने वाले सैलानियों को देखते ही जंगल के जानवर उनके पास आने के लिए दौड़ पड़ते थे। इस जंगल में सांभर के अलावा हरिण, चौसिंगा, नील गाय, जंगली लोमड़ी, चीतल, खरगोश, मोर, जंगली बिल्ली, सरिसर्प, अजगर आदि सैकड़ों की संख्या में हैं। यहां हरिण प्रजाति के जानवरों की संख्या 400 से अधिक है। वन्यजीव अधिकारी विजय पटेल ने बताया कि कोरोना से पहले सतमालिया में प्रतिवर्ष 80 हजार पर्यटक आते थे। इसमें भ्रमण के लिए सैलानियों को वाहन उपलब्ध कराया जाता है। पर्यटकों को भ्रमण के लिए 7 किमी लम्बा कच्चा रास्ता बना है।