आंबोली निवासी छगनभाई पागी ने बताया कि अब दिहाड़ी का काम मिलना बंद हो गया है। काम मिलता है तो मजदूरी बहुत कम मिलती है। अब ठेकेदारों के पास कम मजदूरी में दिनभर काम करना मजबूरी हो गई है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से स्वरोजगार भी नहीं कर सकते हैं। कारोबारियों का कहना है कि उद्योगों के साथ निर्माण कार्यो में भी मजदूरों को पहले जैसा काम नहीं मिलता है। यहीं हाल रहा तो आने वाले समय में चुनौतियां और बढ़ सकती है। औद्योगिकीकरण से ग्रामीण इलाकों में खेती-बाड़ी की गतिविधियां ठप पड़ गई है। घरों में खर्चे बढ़ गए हैं, ऐसे में श्रम बाजार के हाल बेहाल हो गए हैं।