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डांग सीएसआर प्रकरण : डांग के बंटी-बबली ने लाजपोर सेंट्रल जेल और बैंक को भी लगाया था चूना

locationसूरतPublished: Jul 10, 2018 10:19:46 pm

जेल से फर्जी एमओयू साइन कर बैंक से लिया था नौ लाख का लोन

patrika

डांग सीएसआर प्रकरण : डांग के बंटी-बबली ने लाजपोर सेंट्रल जेल और बैंक को भी लगाया था चूना

सूरत. डांग में सीएसआर प्रकरण के मास्टर माइंड शातिर अंकित मेहता और भावेश्री ने लाजपोर सेंट्रल जेल और एक बैंक को भी चूना लगाया था। तीन साल पहले बैंक से फर्जी एमओयू साइन कर वह नौ लाख रुपए का लोन लेकर रफूचक्कर हो गए थे। इस संबंध में जेल प्रशासन ने मंगलवार को सीआइडी क्राइम में प्राथमिकी दर्ज करवाई है।

सीआईडी क्राइम के सूत्रों के मुताबिक नवसारी तिघरा के क्रिस्टल लग्जरिया अपार्टमेंट निवासी भावेश्री दावड़ा और अंकित मेहता ने नियोजित साजिश के तहत सूरत के लाजपोर सेंट्रल जेल और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ धोखाधड़ी की थी। अमहदाबाद के वेजलपुर में गिरनारी नारी सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट चलाने वाली भावेश्री ने तीन साल पहले अहमदाबाद पुलिस महानिरीक्षक (जेल) को पत्र लिख कर जेलों में कैदियों के उत्कर्ष कार्य के लिए मंजूरी मांगी थी। अनुमति मिलने पर भावेश्री ने लाजपोर सेंट्रल जेल के तत्कालीन अधीक्षक से फोन कर अंकित की पहचान उनकी संस्था से जुड़े एम.के. फूड्ज यूनिवर्सल ग्रुप ऑफ कंपनी के सीइओ मेंहुल सिंह वाघेला के रूप में दी। उसके बाद अंकित लाजपोर जेल के अधीक्षक से मिला। उसने जेल में कैदियों द्वारा चिप्स आदि जो खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं, उनकी मार्केटिंग करने का प्रस्ताव रखा। जेल प्रशासन को उसने कंपनी के पैकिंग मटीरियल आदि की खरीद के बिल दिखाए। जेल प्रशासन को प्रभावित कर उसने २६ मई, २०१५ को इस संबंध में जेल अधीक्षक के साथ एमओयू साइन किया। मेंहुलसिंह वाघेला बने अंकित मेहता ने एमओयू के आधार पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से नौ लाख रुपए का लोन लिया। उसके बाद दोनों रफूचक्कर हो गए। डांग जिले में सीएसआर प्रकरण की जांच में जुटी अहवा पुलिस द्वारा भावेश्री और अंकित मेहता को गिरफ्तार किए जाने के बाद लाजपोर जेल प्रशासन की ओर से जेल के उद्योग विभाग के बी.टी. देसाई ने दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा ४०९, ४०६, ४२०, ४१९, ४६७, ४६८, ४७१, ४७४,१७७ और १२० बी के तहत सीआइडी क्राइम की सूरत इकाई में प्राथमिकी दर्ज करवाई।

प्रवेश पर लगाई थी रोक


जेल प्रशासन का कहना है कि एमओयू साइन करने के बाद अंकित और भावेश्री ने जेल में कोई काम नहीं किया। सालभर बाद उनका एमओयू फर्जी होने की जानकारी मिलने पर ८ सितम्बर, २०१६ को अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (जेल) और पुलिस महा निरीक्षक (जेल) ने लाजपोर समेत सभी जेलों को पत्र लिखकर उनकों दी गई अनुमति निरस्त कर दी थी तथा उन्हें जेलों में प्रवेश देने पर पाबंदी लगा दी थी।

जेल प्रशासन भी सवालों के घेरे में


डांग जिला प्रशासन की तरह इस मामले में जेल प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। डांग जिला प्रशासन की तरह जेल प्रशासन ने भी एमओयू साइन करने से पहले या उसके बाद कंपनी की कोई पड़ताल नहीं की। २०१६ में ही एमओयू फर्जी होने की जानकारी मिल गई थी। फिर भी इस संबंध में तत्काल कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।

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