कर्मों से देह बदलती है, आत्मा तो अनादि से अनंत काल तक रहेगी
सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से परवत पाटिया में चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के पास आयोजित समयसार मंडल विधान और निजात्म...

सूरत।सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से परवत पाटिया में चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के पास आयोजित समयसार मंडल विधान और निजात्म कल्याण शिविर के दौरान रविवार को धर्म क्यों...विषय पर जयपुर से आए मोटिवेटर शुद्धात्मप्रकाश भारिल्ल ने विस्तार से धर्म पर जानकारी दी।
दोपहर आयोजित सेमिनार में वक्ता एस.पी. भारिल्ल ने लोगों को बताया कि हर जीव का स्वभाव, व्यवहार एवं व्यवस्था अलग-अलग है। जगत में जो भी पदार्थ है, वह कभी खत्म नहीं होता, बल्कि परिवर्तनशील रहता है। व्यक्ति वर्तमान में जिस परिस्थिति में जी रहा है, वह पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है।
वह वर्तमान में जैसा कार्य करेगा, उसका फल अगले जन्म में मिलना निश्चित है। जैसे पानी का स्वभाव शीतल है और अग्नि का स्वभाव उष्ण है, अर्थात किसी भी वस्तु का मूल स्वभाव ही उसका धर्म है। आत्मा आदि अनादिकाल से है और अनंतकाल तक रहेगी। बस, कर्मों के हिसाब से देह बदलती रहती है।
जीवन में आने वाले सुख-दुख के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, किसी पराये का इसमें कोई दोष नहीं है। भारिल्ल ने बताया कि जब हम कोई गतिविधि या कार्य करते हैं, तब सोचना चाहिए कि इन भावों का परिणाम क्या होगा, तो हम बुरा कार्य नहीं करेंगे। जब वस्तु का स्वरूप समझने की रुचि जागृत होगी, तभी हम धर्म कर सकेंगे। इससे पहले सुबह समयसार विधान मंडल की पूजा की गई और डॉ. संजीवकुमार गोधा, पं. प्रदीप झांझरी तथा सुमतप्रकाश खनियांधाना ने प्रवचन दिए। बच्चों को उपहार दिए गए। कार्यक्रम में विद्याप्रकाश दीवान, संजय दीवान समेत कई प्रमुख लोग मौजूद थे।मंगलवार से अंतरराष्ट्रीय स्तर के वक्ता डॉ. हुकमीचंद भारिल्ल के प्रवचन होंगे।
पूजा और प्रवचन का दौर
सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से आयोजित समयसार विधानमंडल और आध्यात्मिक शिक्षण शिविर में दूसरे दिन पंडाल में नित्यपूजा तथा अभिषेक के बाद विधान शुरू किया गया। डॉ. संजीवकुमार गोधा, जयपुर के निर्देशन में विधानाचार्य भरतकुमार मेहता ज्ञायक ने मंत्रोच्चार के साथ विधान कराया। इस दौरान दो हजार वर्ष प्राचीन आचार्य कुंदकुंद रचित ग्रंथ के अध्यात्म और तत्व ज्ञान को सरल भाषा में श्रद्धालुओं समझाया गया।
एक्सेप्ट एज इट इज...
एस.पी. भारिल्ल ने कहा कि जो जिस हाल में है, उसे वैसे ही स्वीकार लिया जाए तो जीवन में कोई समस्या नहीं रहेगी। एक्सेप्ट एज इट इज...अंग्रेजी के यह चार शब्द किसी के भी जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर सकते हैं। धर्म किसी के भी मूल स्वभाव में छिपा है और हम उसे उसके अनुरूप ही लेंगे, तभी उसकी गंभीरता बनी रहेगी। भारिल्ल ने इसके अगले अग्रेंजी के तीन शब्द टेक इट इजी भी बताए।
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