मैदानी क्षेत्रों में जलसंकट
दपाड़ा, सुरंगी, आंबोली, रांधा के मैदानी गांव भी पानी के लिए तरस रहे हैं। इन गांवों का भूमिगत पानी रसातल में चला गया है। दपाड़ा में गहरे कुओं से पानी लेने महिलाएं दूर-दूर जाती हैं। वासोणा, खडोली, चिचपाड़ा के बोरवेल व कुओं में पानी कम हो गया है। जिला पंचायत द्वारा खोदे गए बोरवेल अब सूख गए हैं। कार्यकारी इंजीनियर के बी वालंद ने बताया कि गर्मी और धूप से पानी की जरूरत बढ़ी है। गांवों में आपूर्ति के टैंकर बढ़ा दिए हैं। पानी के अभावग्रस्त गांवों में पानी टैंकरों से आपूर्ति हो रही है। अभावग्रस्त गांवों में प्लास्टिक की टंकियां रखी हैं, जिसे रूटीन से पानी भरा जाता है।
मधुबन डेम के पड़ोसी गांव प्यासे
मधुबन डेम के आसपास बसे गांव भी पानी के लिए तरस रहे हैं। कौंचा हद पर एस्टोल, उमाला, केस्टी पिस्तरी जंगल, अंबा जंगल, गिरनारा, बालघर, कुकडिय़ा, टुकवाड़ा, वलोली, फनी, नांदगांव, वेरीगुवाड़ा में पेयजल की भारी किल्लत है। नहरों के अभाव से इन गांवों में भू-जल पाताल में पहुंच गया है। ग्रामीण दूर-दूर से पानी लाने के लिए मजबूर हैं। मधुबन डेम के जलक्षेत्र में आधा हिस्सा महाराष्ट्र के गांवों का है। यहां से वापी, दमण, उमरगांव, पारडी और वलसाड को पानी मिलता है। डेम निर्माण से पांच गांव विस्थापित हुए थे, जहां डेम से नहरें नहीं पहुंची हैं। पड़ोसी अंबा जंगल, सुतारपाड़ा, गिरनारा, बालघर, कुकडिय़ा, टुकवाड़ा, वलोली, फनी, नांदगांव, वेरीगुवाड़ा आदि गांवों के लोग पेयजल के लिए परेशान हंै। इन गांवों में टैंकर से पानी की आपूर्ति हो रही है। ग्रामवासियों का कहना है कि मधुबन डेम से नहरों के लिए पानी छोडऩे के लिए गुजरात सरकार को कई बार अवगत कराया है, लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है।