कपड़ा बाजार और कपड़ा कारोबार में रोजगार के अपुष्ट आंकड़ों के बारे में जानें तो 2004 से 2014 का दस वर्षीय काल रोजगार के अवसर मुहैया कराने में काफी बेहतर रहा। अकेले एम्ब्रोयडरी व्यवसाय, जो इन दस वर्षों में एक-सवा लाख मशीनों तक पहुंच गया था, वह घटकर अब 60-65 हजार रह गईं।
इनसे अभी एक से सवा लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कपड़ा बाजार के जानकार बताते हैं कि करीब पौने दो सौ टैक्सटाइल मार्केट में जीएसटी लागू होने के पहले तक 65 हजार से अधिक व्यापारिक प्रतिष्ठानों के हजारों कपड़ा व्यापारियों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष 8-10 लोग रोजगार से जुड़े हुए थे, जो अब घटकर मात्र 3-4 पर आ गए हैं। विविध व्यापार महामंडल के प्रमुख और कपड़ा व्यापारी जयलाल बताते हैं कि कपड़ा बाजार के व्यापारियों से कर्मचारियों के अलावा कटिंग, फोल्डिंग, पार्सल ठेकेदारों के अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर अंदाजन एक लाख को रोजगार मिला
हुआ है। इसके अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर करीब एक लाख घरेलू महिलाओं को भी कपड़ा बाजार से रोजगार मिला हुआ है। इनकी संख्या में जीएसटी के बाद कोई कमी नहीं आई।
समीक्षा के लिए भेजी रिपोर्ट
हाल ही कपड़ा बाजार के व्यापारियों के संगठन फैडरेशन ऑफ सूरत टैक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी को नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के 12 माह बाद कपड़ा कारोबार की समीक्षा के लिए रिपोर्ट भेजी। इसमें बताया गया कि सूरत की कपड़ा मंडी में पहले प्रतिदिन चार करोड़ मीटर से अधिक कपड़े का उत्पादन होता था, जो घटकर ढाई करोड़ रह गया। एम्ब्रोडरी और लूम्स मशीनें घटने का दौर जारी है। रियल एस्टेट के मार्केट में दुकानों की मांग में भी कमी देखने को मिली है। इन सभी का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर कपड़ा बाजार और कारोबार में कार्यरत श्रमिकों के रोजगार पर प्रभाव
पड़ा है।
छोटे व्यापारी घटते गए
जीएसटी लागू होने के बाद कपड़ा कारोबार में छोटे और बड़े व्यापारी की धारणा भी लागू हो गई। जानकार बताते हैं कि जीएसटी से बड़े व्यापारियों का कारोबार बढ़ा, लेकिन रोजगार नहीं बढ़ा। वहीं, छोटे व्यापारियों के यहां रोजगार ही नहीं घटा, बल्कि ऐसे व्यापारी भी घट गए हैं। उनके मुताबिक कपड़ा बाजार में 60 से 70 फीसदी छोटे और 30 से 40 फीसद बड़े व्यापारी है। बड़े व्यापारियों के यहां व्यापार बढऩे के बावजूद श्रमिकों की संख्या नहीं बढ़ी है। वहीं, छोटे व्यापारियों के यहां से मात्र आठ-दस माह में 23-30 हजार कुशल-अकुशल श्रमिक काम छोडक़र चले गए हैं।
दिहाड़ी मजदूर भी घटे
कपड़ा बाजार में सहारा दरवाजा, श्री सालासर हनुमान प्रवेश द्वार, कमेला दरवाजा समेत अन्य प्रमुख स्थलों पर दोपहर से शाम तक दुपहिया और चौपहिया मालवाहक वाहनों के पीछे पोटला उठाने की आस में दौड़ते दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी काफी घट गई है। कपड़ा व्यापारी ललित शर्मा बताते हैं कि पहले दिहाड़ी मजदूरों को वाहनों के पीछे दौड़ते हर समय देखा जा सकता था। अब अवसर काफी घट गए है। थोड़ी-सी पूंजी में कपड़ा कारोबार शुरू करने वाले बाहर के व्यापारियों की संख्या में भी तेजी से कमी आई है।
दिनेश भारद्वाज