राजनीतिक विरोधी बीते तीन दशक से गुजरात में सत्ता पर काबिज भाजपा के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी के साथ ही कोरोनाकाल और उसके बाद बेरोजगारी व महंगाई से त्रस्त लोगों की नाराजगी का फायदा उठाने की फिराक में हैं। विधानसभा 2017 के परिणाम राजनीतिक विरोधियों की उम्मीदों को पंख दे रहे हैं। दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व ने गुपचुप बातचीत शुरू कर दी है और चुनाव से पहले या परिणाम के बाद गठबंधन के फार्मूले पर मंथन हो रहा है।
सीटों के बंटवारे पर फंसा पेंच फिलवक्त चुनाव से पहले गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है। आम आदमी पार्टी निकाय चुनावों के प्रदर्शन के बूते बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहती है, जबकि कांग्रेस विपक्ष के अपने दावे को कमजोर नहीं करना चाहती। जानकारों की मानें तो आम आदमी पार्टी 110 सीटें मांग रही है, लेकिन कांग्रेस बराबर की हिस्सेदारी की बात कर रही है।
नरेश और हार्दिक हॉटकेक! कांग्रेस जहां खोडलधाम के नरेश पटेल को उनकी शर्तों पर अपने साथ लाने के लिए तैयार हो गई है, आम आदमी पार्टी हार्दिक को अपने साथ लाने की कवायद में जुटी है। हालांकि हार्दिक पटेल के बयान भाजपा के साथ पींगे बढ़ाने के संकेत भी दे रहे हैं। यदि हार्दिक आप से जुड़ते हैं तो कड़वा पटेल मतों का फायदा आप को मिलेगा और लेउवा पटेल बहुल सीटों पर नरेश पटेल का साथ कांग्रेस को बढ़त दिला सकता है।
स्ट्रेटेजी तो नहीं हार्दिक का विरोध! राजनीति के जानकार हार्दिक पटेल के कांग्रेस छोडऩे को पीके की स्ट्रेटेजी भी मान रहे हैं। हार्दिक का कांग्रेस छोडऩा नूराकुश्ती से ज्यादा नहीं है। आप-कांग्रेस के गठबंधन की चर्चा के बीच हार्दिक के आप से जुडऩे के कयासों की चर्चा दोनों दलों की स्ट्रेटेजी भी हो सकती है। उनके मुताबिक एक विकल्प यह भी है कि हार्दिक भाजपा से जुड़ें और फिर चुनाव के ऐन पहले या बाद में विपक्ष के खेमे में खड़े हो जाएं।
नया नहीं है प्रयोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का साथ आना नया प्रयोग नहीं है। वर्ष 2013 में दिल्ली में शीला दीक्षित को करारी शिकस्त देकर बहुमत के नजदीक पहुंची आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर दिल्ली की सत्ता हासिल की थी। अब गुजरात में भी इस प्रयोग को दोहराया जा सकता है।