आर्थिक तंगी से जूझ रहे उद्योग
उद्यमियों के मुताबिक नोटबंदी, जीएसटी और अब कोरोना लॉकडाउन ने उद्योगों को जमीन पर ला दिया है। इसका सबसे ज्यादा असर सूरत पर पड़ा है। ग्रामीण कार्यों में एक सीमा तक ही मनरेगा प्रभावी साबित हो रही है। उद्योगों से जोड़कर इसे विस्तार दिया जा सकता है। इससे कृषि लॉजिस्टिक को भी बल मिलेगा, जिसका सीधा फायदा किसानों को होगा।एकीकरण से मजबूत होगी मनरेगा
जानकार पूरी सावधानी के साथ मनरेगा को उद्योगों से जोडऩे का समर्थन कर रहे हैं। उनके मुताबिक सीमित संसाधनों के साथ इसकी पहल की जानी चाहिए। मनरेगा लघु और मध्यम उद्योगों के लिए संजीवनी का काम करेगी।एक पक्ष यह भी
जानकारों के मुताबिक औद्योगिक राज्यों में मजदूरों का प्रबंधन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से होता है। मनरेगा को उद्योगों से जोड़ा गया तो इन प्रदेशों में भी लघु एवं मध्यम उद्योग विकसित होंगे। इससे मजदूरों का पलायन रुकेगा जिसका खामियाजा महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे प्रदेशों को भुगतना पड़ सकता है।सरपट दौड़ेगा सूरत
नोटबंदी, जीएसटी और अब लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार सूरत पर पड़ी है। उद्योगों को मनरेगा से जोड़ा जाता है तो गुजरात के अर्थतंत्र की धुरी बन चुके हीरा और कपड़ा कारोबार को खासा फायदा होगा। उद्योगों का मनरेगा में शामिल होना शहर की अर्थव्यवस्था के लिए ऑक्सीजन का काम करेगा।फायदे में रहेगा सूरत
अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा सुझाव है। इससे उद्योगों को सरकार का सीधा सपोर्ट मिलेगा। इसके लिए फार्मूला तय करना होगा। मनरेगा में उद्योगों के शामिल होने का सबसे ज्यादा फायदा सूरत को होगा।
केतन देसाई, प्रमुख, दक्षिण गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, सूरत