सवाल- रॉकेट बनाने की अचानक कैसे सूझी?
जवाब- बचपन से ही रॉकेट साइंस से जुड़ाव था। इसरो में जॉब नहीं मिलने पर 2015 में एक क्लब से शुरुआत की। बाद में यहां तक पहुंचे कि अब स्पेस में अपना रॉकेट भेजने की तैयारी है।
जवाब- बचपन से ही रॉकेट साइंस से जुड़ाव था। इसरो में जॉब नहीं मिलने पर 2015 में एक क्लब से शुरुआत की। बाद में यहां तक पहुंचे कि अब स्पेस में अपना रॉकेट भेजने की तैयारी है।
सवाल- रॉकेट की सेटेलाइट ले जाने की क्षमता क्या होगी?
जवाब- यह रॉकेट 20 किलो तक वजनी सेटेलाइट को स्पेस में ले जाने में सक्षम है। सेटेलाइट का अधिकतम साइज 20 गुणा 20 सेमी का होगा।
जवाब- यह रॉकेट 20 किलो तक वजनी सेटेलाइट को स्पेस में ले जाने में सक्षम है। सेटेलाइट का अधिकतम साइज 20 गुणा 20 सेमी का होगा।
सवाल- किस तरह के सेटेलाइट्स को भेजना संभव होगा?
जवाब- इस रॉकेट से रिसर्च एंड एनेलेसिस से जुड़े सेटेलाइट्स को ही स्पेस में भेजा जा सकेगा। रॉकेट को लांच करने के लिए स्टार ग्रुप अपना ही लांच पैड भी तैयार कर रहा है।
जवाब- इस रॉकेट से रिसर्च एंड एनेलेसिस से जुड़े सेटेलाइट्स को ही स्पेस में भेजा जा सकेगा। रॉकेट को लांच करने के लिए स्टार ग्रुप अपना ही लांच पैड भी तैयार कर रहा है।
सवाल- सूरत में बने रॉकेट में क्या खास रहेगा?
जवाब- रॉकेट स्पेस में जाकर सुरक्षित वापस आ जाएगा। यह तकनीक अब तक यूएस और यूरोपीय देशों के पास ही है। भारत में किसी निजी सेटेलाइट कंपनी के पास अब तक यह क्षमता नहीं है। इस मायने में सूरती रॉकेट खास है कि वह सेटेलाइट को भी अपने साथ सुरक्षित वापस ले आएगा।
जवाब- रॉकेट स्पेस में जाकर सुरक्षित वापस आ जाएगा। यह तकनीक अब तक यूएस और यूरोपीय देशों के पास ही है। भारत में किसी निजी सेटेलाइट कंपनी के पास अब तक यह क्षमता नहीं है। इस मायने में सूरती रॉकेट खास है कि वह सेटेलाइट को भी अपने साथ सुरक्षित वापस ले आएगा।
सवाल- पूरे प्रोसेस में कितना समय लगेगा?
जवाब- यह पूरी प्रक्रिया महज 15 मिनट में पूरी हो जाएगी। सेटेलाइट तीन मिनट ही स्पेस में रहकर जरूरी डाटा एकत्र कर लेगा। इस तकनीक से सेटेलाइट और रॉकेट को बार-बार नए मिशन के साथ स्पेस में भेजना संभव होगा।
जवाब- यह पूरी प्रक्रिया महज 15 मिनट में पूरी हो जाएगी। सेटेलाइट तीन मिनट ही स्पेस में रहकर जरूरी डाटा एकत्र कर लेगा। इस तकनीक से सेटेलाइट और रॉकेट को बार-बार नए मिशन के साथ स्पेस में भेजना संभव होगा।
सवाल- रॉकेट पर कितना खर्च आ रहा है?
जवाब- पहले रॉकेट पर करीब 60 लाख रुपए का खर्च आ रहा है। तीसरे रॉकेट तक इसे घटाकर 30 लाख रुपए और उसके बाद इसे दस लाख रुपए तक लाने का लक्ष्य है। इससे उन समूहों के लिए सेटेलाइट भेजना आसान हो जाएगा, जो महंगे खर्च के कारण अभी ऐसा नहीं कर पा रहे।
जवाब- पहले रॉकेट पर करीब 60 लाख रुपए का खर्च आ रहा है। तीसरे रॉकेट तक इसे घटाकर 30 लाख रुपए और उसके बाद इसे दस लाख रुपए तक लाने का लक्ष्य है। इससे उन समूहों के लिए सेटेलाइट भेजना आसान हो जाएगा, जो महंगे खर्च के कारण अभी ऐसा नहीं कर पा रहे।
सवाल- कहां से लांच करेंगे रॉकेट?
जवाब- इस बारे में इसरो से बात करेंगे। केरल में जहां भी इसरो जगह देगा, रॉकेट लांच करेंगे। सवाल- क्या सूरत से लांच करना संभव नहीं?
जवाब- रॉकेट ईस्ट डायरेक्शन में जाता है। सूरत से करेंगे तो ईस्ट में नीचे महाराष्ट्र आता है। केरल में ईस्ट बॉर्डर से आगे समुद्र है। यदि कभी रॉकेट क्रेश भी हो तो कोई खतरा नहीं रहता।
जवाब- इस बारे में इसरो से बात करेंगे। केरल में जहां भी इसरो जगह देगा, रॉकेट लांच करेंगे। सवाल- क्या सूरत से लांच करना संभव नहीं?
जवाब- रॉकेट ईस्ट डायरेक्शन में जाता है। सूरत से करेंगे तो ईस्ट में नीचे महाराष्ट्र आता है। केरल में ईस्ट बॉर्डर से आगे समुद्र है। यदि कभी रॉकेट क्रेश भी हो तो कोई खतरा नहीं रहता।