संघ प्रदेश में समय के साथ बारिश होने से खेतों में पानी की कमी नहीं है। किसानों के अनुसार पौधारोपण का समय आ चुका है। अक्सर जून के अंतिम सप्ताह से पौध का रोपण शुरू हो जाता है। पौध रोपण पूरे जुलाई माह चलता हैं। सिंचित क्षेत्रों व नदी-नालों के किनारे खेतों में वर्ष में दो बार धान की खेती होती है, वहीं असिचिंत क्षेत्रों में खेती पूर्णतया मानसून पर निर्भर हैं। इस साल समय पर बारिश होने से खरीफ की बुवाई में कोई दिक्कत नहीं है। दादरा नगर हवेली के रांधा, किलवणी, दपाड़ा, खानवेल, मांदोनी, सिंदोनी, आंबोली, खेरड़ी और कौंचा में जमकर खरीफ की खेती होती है। कृषि विभाग के अनुसार जिले में 19 हजार हैक्टर भूमि पर खरीफ की बुवाई होती है। कृषि पर्यवेक्षक एस भोया ने बताया कि किसान अब कम समय में अधिक पैदावार वाली आधुनिक खेती करने लगे है। अधिकांश किसानों ने धान के हाइब्रीड बीजों की बुवाई की हैं।
जिले में खरीफ की ऋतु में 90 प्रतिशत खेती योग्य जमीन पर बुवाई होती हैं। मानसून में मूंग, अरहर, नागली, मूंगफली, ज्वार और सब्जियों की खेती मुख्य रूप से की जाती है। कृषि विभाग के अनुसार धान के हाइब्रीड 807, 837, 2233, 786, 6201, 6444, आई आर-20, जी आर- 4/11, जया, मसूरी अधिक उपज वाली बीज की मुख्य प्रजातियां अधिक बोई जाती हैं। हाइब्रीड बीज सामान्य बीजों की अपेक्षा 25 से 30 प्रतिशत ही पर्याप्त रहते हैं। मूंग की अधिक उपज वाली पूसा 0672 व पूसा 9531 वाली किस्मों की खेती पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत से होने लगी हैं।