सीपीसीबी द्वारा देश के सौ औद्योगिक क्षेत्रों में से 38 को अति प्रदूषित क्षेत्र बताया गया है। इसमें वापी समेत नौ औद्योगिक क्षेत्र का समावेश है। एनजीटी के प्रदूषण के मामले में सख्त रुख अख्तियार करने से वापी के उद्योगों पर बंद होने का संकट गहराने लगा है। क्योंकि एनजीटी ने सीपीसीबी को देश में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को नागरिकों के आरोग्य की कीमत पर किसी भी सूरत में न चलाने और तीन महीने के भीतर प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को बंद करने का आदेश दिया है। उद्योगों पर इस आदेश के बाद मंडराते संकट को देखते हुए रविवार को वीआईए के पदाधिकारियों समेत कई लोगों के दिल्ली के लिए रवाना होने की भी जानकारी सामने आई है।
एनजीटी ने दस जुलाई को अपने आदेश में वापी, अंकलेश्वर, सूरत, वटवा, वड़ोदरा, भावनगर, अहमदाबाद, मोरबी और जूनागढ़ को ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र माना था। इसके बाद से यहां की इंडस्ट्रीज के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। वहीं वापी इंडस्ट्रीज से जुड़े लोग यह मान रहे हैं कि सीपीसीबी ने जीपीसीबी के साथ मिलकर 2018 में जो सेपी इंडेक्स अलग-अलग क्लस्टरों के लिए निकाला था, उसके बारे में जीपीसीबी से बिना कोई चर्चा किए ही एनजीटी को सौंप दिया गया।
जबकि सीपीसीबी की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी इंडस्ट्रियल क्लस्टर को उसकी कैटेगरी के अनुसार प्रदूषित घोषित करने से पूर्व समय देना जरूरी है। इसका एनजीटी के इस आदेश में पालन नहीं किया गया है। सूत्रों के अनुसार इसी को आधार बनाकर सूची में शामिल गुजरात के सभी औद्योगिक विस्तारों की सामूहिक अर्जी एनजीटी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने की रणनीति पर भी विचार शुरू हो गया है। इसके अलावा सीपीसीबी द्वारा भी जीपीसीबी को अभी तक इस संबंध में कोई निर्देश नहीं मिला है। इससे वापी इंडस्ट्रियल क्षेत्र को क्रिटिकल घोषित करने को लेकर स्पष्टता सामने नहीं आ रही है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रदूषित इंडस्ट्रियल क्षेत्र में वापी का सेपी इंडेक्स 79.95 बताया गया है। जानकारों के अनुसार 70 से ज्यादा सेपी इंडेक्स होने पर उसे क्रिटिकल पॉल्यूटेड माना जाता है। इस मामले के सामने आने के बाद से औद्योगिक इकाई के संचालकों और वीआईए के पदाधिकारियों में हडक़ंप मचा हुआ है।