जेल का नाम आते ही आमतौर पर आम आदमी की नजर मेें फिल्मों में दिखाई जाने वाली जेल का चेहरा सामने आता है। लाजपोर जेल की हकीकत सिनेमाई जेल से बिल्कुल अलग है। यहां लोगों को जेल से बाहर निकलने के बाद शेष जीवन सम्मानित तरीके से बिताने का सलीका सिखाया जा रहा है। दुनियाभर के दस में से आठ हीरे हीरा नगरी सूरत में तराशे जाते हैं। हीरे के तराशगीरों को तैयार करने के लिए लाजपोर जेल प्रशासन ने जेल परिसर में ही 12 घंटियां लगाई हैं। यहां 45 कैदी हीरों पर कारीगरी कर रहे हैं। प्रशिक्षण के साथ ही आमतौर पर हीरे की घिसाई सीख रहे कैदी आठ से 15 हजार रुपए महीने तक की कमाई भी कर रहे हैं। जेल परिसर में दो घंटी से शुरू हुई हीरे की यह फैक्टरी हर महीने करीब ढाई लाख रुपए तक का काम कैदियों को दे रही है।
हीरा ही नहीं कपड़े के वैल्यू एडिशन की बारीकियां भी यहां सिखाई जा रही हैं। वस्त्र नगरी सूरत साडिय़ों पर वैल्यू एडिशन के लिए देशभर में अपनी खास पहचान रखती है। वैल्यू एडिशन के लिए साडिय़ों पर होने वाले जॉबवर्क से 60 लोग जुड़े हुए हैं। इसके अलावा जेल परिसर में ही वीविंग प्रशिक्षण के लिए 20 लूम्स लगाई गई हैं, जिनपर 14 लोग काम सीख रहे हैं। सीखने की इस मुहिम में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। लेस-पट्टी के काम में 15 महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। जेल प्रशासन की कोशिश है कि जेल में विभिन्न कलाओं में प्रशिक्षण ले रहे लोगों को बाहर निकलने के बाद सम्मानजनक रोजगार मिल सके।
दूसरे उद्योगों में भी हो रहे पारंगत
जेल प्रशासन ने कैदियों को सक्रिय रखने और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए रोजगार, प्रशिक्षण और अन्य गतिविधियों के माध्यम से कई पुनर्वास योजनाएं संचालित की हैं। इसके तहत हीरा और टैक्सटाइल के साथ ही ऑटोमोबाइल, पेंटिंग, फर्नीचर, सिलाई, बेकरी समेत कई अन्य उद्योगों में काम करने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। कई कैदियों ने पढ़ाई का सिलसिला भी शुरू किया है।
मुख्यधारा में लाने का प्रयास
अलग-अलग कारणों से जेल में सजा काट रहे कैदियों को विभिन्न कलाओं में पारंगत कर बेहतर भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है। हमारी कोशिश है कि अपराध के दलदल से बाहर निकालकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाएं। यहां कैदियों को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो सजा काटने के बाद बेहतर जीवन यापन के लिए उनके काम आएगा।
मनोज निनामा, जेल सुपरिटेंडेंट, लाजपोर जेल, सूरत