अवसर बनकर आया लॉकडाउन- चंद्रकांत पाटिल
काम छूटा तो मेक इन इंडिया के बने ब्रांड एम्बेसडर, दो महीने में बना ली मशीन

सूरत. मशीन कारीगर चंद्रकांत पाटिल के लिए कोरोना लॉकडाउन अवसर बनकर सामने आया। लॉकडाउन के दौरान काम छूटा तो दो महीने में उन्होंने अपने कौशल से एक आयातित मशीन का भारतीयकरण कर लिया। उनकी इस उपलब्धि को केंद्रीय कपड़ा और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति इरानी ने मेक इन इंडिया के रूप में लिया और सार्वजनिक मंच से सराहना की।
कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन हुआ तो कई अन्य लोगों की तरह नवागाम डिंडोली निवासी चंद्रकांत पाटिल का भी काम छूट गया था। पाटिल शुरू से ही मशीनों के स्पेयर पाट्र्स बनाते थे। लॉकडाउन के दौरान जब हाथ में काम नहीं था, अपने साथी के साथ मिलकर उन्होंने मशीन बनाने का मन बना लिया। जो मशीन विदेश से 50 लाख से अधिक कीमत में आयात होती है, उस पर रिसर्च एंड डवलपमेंट की कवायद शुरू की। नतीजा यह रहा कि दो महीने की मेहनत में ही उन्होंने उस मशीन को बनाने में महारत हासिल कर ली। पाटिल की बनाई मशीन की लागत महत 23 लाख रुपए आई।
सीटेक्स में आई केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी को जब इस कौशल का पता चला तो वे चंद्रकांत पाटिल के स्टाल पर गईं और उनसे बातचीत की। स्मृति ने उनकी इस उपलब्धि को खास बताते हुए कहा कि पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार किया है। पाटिल की इस उपलब्धि की सराहना स्मृति इरानी ने अपने संबोधन के दौरान सार्वजनिक मंच से भी की।
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