प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेक्सटाइल उद्योग में भी मेक इन इंडिया पर फोकस बढ़ाया है। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में आयातित हाई स्पीड मशीनों पर टैक्स को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। तकनीक के दौर में भी टेक्सटाइल की मशीनें चीन और दूसरे देशों से आयात की जा रही है। देश में न तो व्यवस्थित निर्माण हो रहा है और ना ही देश में बनी मशीनों की गुणवत्ता बेहतर है।
पहले भी हुई थी कोशिश कोविड से पहले एक बार कोशिश हुई थी, दक्षिण गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने खाका भी तैयार किया था। इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति इरानी से मुलाकात भी हुई थी। केंद्र सरकार को प्रजेंटेशन भी दिया था। कोरोना के बाद इस दिशा में काम आगे नहीं बढ़ा। प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों मेगा टेक्सटाइल पार्क को मंजूरी दी है। इसके बाद एक बार फिर मशीनरी पार्क को लेकर उद्यमियों में सुगबुगाहट शुरू हुई है।
मूल प्रस्ताव में था मशीनरी पार्क जानकारों की मानें तो केंद्र को दिए गए टेक्सटाइल पार्क के मूल प्रस्ताव में मशीनरी से फिनिश्ड गुड्स तक का कांसेप्ट था। बाद में इसे फार्म टु फॉरेन के फाइव एफ फार्मूले तक सीमित कर दिया गया। इससे मशीनरी के देश में निर्माण की संभावनाओं पर फिलहाल विराम लग गया है।
मशीनों का देश में बनना जरूरी चीन समेत दूसरे देशों पर निर्भरता से मेक इन इंडिया के सपने को पूरा नहीं किया जा सकता। उच्च गुणवत्तायुक्त मशीनों के देश में ही निर्माण के लिए सरकार को सहयोग करना होगा।
हेतल मेहता, पूर्व प्रमुख, दक्षिण गुजरात चैम्बर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज, सूरत बाद में नहीं हुई कोशिश मेरे कार्यकाल में मशीनरी पार्क के लिए इनीशिएटिव लिया गया था। कोविड आने से ब्रेक लग गया। उसके बाद कोशिश नहीं हुई। हमें नए सिरे से इस दिशा में काम करना होगा।
केतन देसाई, पूर्व प्रमुख, दक्षिण गुजरात चैम्बर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज, सूरत