सूरत को पिछले साल ओपन डेफ्रिकेशन फ्री (ओडीएफ) घोषित किया जा चुका है। इसका मतलब है कि शहर में ऐसा कोई परिवार नहीं है, जहां शौचालय की सुविधा नहीं है। यानी हरेक परिवार के पास या तो व्यक्तिगत टॉयलेट की सुविधा है या फिर घर के समीप ही पे एंड यूज की व्यवस्था है। पिछले कुछ साल में सवा चार करोड़ रुपए के खर्च से छह हजार से अधिक व्यक्तिगत टॉयलेट बनाने के बाद शहर को यह उपलब्धि मिली है। यहां तक तो ठीक है, लेकिन पे एंड यूज की व्यवस्था हर जगह एक समान नहीं हो पाई।
शहर की आबादी को ध्यान में रखते हुए मनपा ने सर्वे करवाकर पे एंड यूज की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए 156 नए पे एंड यूज टॉयलेट ब्लॉक मंजूर किए थे। इनके पहले 244 पे एंड यूज बने थे। स्वच्छ भारत मिशन के तहत मनपा ने पहले तो सभी पुराने टॉयलेट ब्लॉक के रिनोवेशन का काम कराया, इसके बाद 70 नए टॉयलेट ब्लॉक बनवाए। कुछ ग्रीन टॉयलेट भी बनवाए गए।
खर्च के हिसाब से नतीजे नहीं
पे एंड यूज की दशा सुधारने के लिए लाखों रुपए खर्च किए गए, उस अनुपात में परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं। रिंग रोड जैसे अति व्यस्त और जरूरत वाले क्षेत्र में एक पे एंड यूज पर ताला लटका हुआ है। इसके पास ही टैक्सटाइल मार्केट फ्लाईओवर के नीचे भी हालात सुधरे हुए नजर नहीं आए। टॉयलेट साफ-सुधरा जरूर दिखे, लेकिन आसपास गंदगी से लोग वहां तक नहीं जाते। यही हालात आंजणा, भटार के आजादनगर मेें देखने को मिले।
आंजणा क्षेत्र के पे एंड यूज में महिलाओं के ब्लॉक को अलग करने के लिए परदा टांग दिया गया है तो पुरुषों के तमाम टॉयलेट में दरवाजे की कुंडी टूटी हुई मिली। भटार के आजादनगर में पे एंड यूज टॉयलेट के पास गंदगी का ढेर मिला, जबकि अंदर साफ-सफाई नजर आई। यहां लोगों से पांच रुपए वसूलने की शिकायत भी मिली। लोगों का कहना था कि टॉयलेट के लिए उनसे पांच रुपए लिए जाते हैं, जबकि वहां शौच की दर दो रुपए लिखी है।
जोनवार पे एंड यूज टॉयलेट
जोन पहले थे नए बने
रांदेर ३१ २०
सेंट्रल २९ ०५
कतारगाम ३२ १०
वराछा ४३ ०७
उधना ४६ १९
अठवा २९ ०५
लिंबायत ३४ ०४
कुल २४४ ७०