बीते करीब तीन दशक से भाजपा के साथ रेशा-रेशा घुल गए पाटीदार 2015 से छिटक गए हैं। यह नाराजगी 2015 के निकाय चुनावों में तो साफ दिखी थी, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में इसका असर कमजोर हो गया था। गुजरातभर में बेहतर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस की सत्ता के अश्वमेध को दक्षिण गुजरात खासकर सूरत ने ही रोका था। हालांकि 2020 के निकाय चुनावों में पाटीदार बहुल पटटी ने एक बार फिर अपनी नाराजगी जताई और इस बार आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर इरादे जता दिए थे। आम आदमी पार्टी ने भी इस मौके को हाथोंहाथ लिया और पाटीदारों के समर्थन को विधानसभा चुनावों में दुहने की तैयारी कर ली। गुजरात के चुनावी समर में पहली बार तीसरा मोर्चा मैदान मारने के मनसूबे पाल रहा है। आम आदमी पार्टी ने गुजरात में पैठ के लिए सूरत को अपनी प्रयोगशाला बनाया है। सूरत की वराछा, कामरेज और कतारगाम सीट पर यह असर दिख भी रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अब्रामा में सभा करने से पहले एयरपोर्ट से अब्रामा तक रोड शो कर लोगों के साथ अपने रिश्तों को फिर जीवंत करने का प्रयास किया। मोदी के पाटीदार उद्यिमयों के साथ पुराने और गहरे रिश्ते रहे हैं। पाटीदार समाज में भी मोदी की गहरी पैठ रही है। दो दिवसीय सूरत दौरे के दौरान मोदी पाटीदार समाज और भाजपा के रिश्तों के उलझे धागों को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा की इस कोशिश पर पलीता लगाने के लिए केजरीवाल भी सूरत में ही हैं। मोदी जख्मों पर मलहम लगाकर जिन धागों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं, जानकारों का मानना है कि केजरीवाल सुलझते धागों को फिर उलझाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे। अपने मिशन में कौन कितना कामयाब हुआ अब यह तो परिणाम ही बताएगा।