कोरोना वायरस के चलते प्रदेश के अधिकांश ग्रामीण खेती पर आश्रित हैं। दूसरी तरफ खाद्यान्न में महंगाई की वजह से खेती का ग्राफ बढ़ा है। मानसून में मैदानी क्षेत्र दादरा, नरोली, मसाट, रखोली, सामरवरणी, आंबोली और दपाड़ा के गांवों में धान व दलहन की जमकर खेती हुई है। जून में मानसून की पहली बारिश होते ही किसानों ने धान के बीज बो दिए थे। यह पौध जल्दी तैयार हो गई जिससे किसानों को धान रोपण में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। कृषि विभाग के अनुसार जिले में 90 प्रतिशत खेतों में धान की रोपाई पूरी हो गई है। खेतों में जल्दी बुवाई-जुताई के लिए मिनी ट्रेक्टर का उपयोग होने लगा हैं। किसानों का कहना है कि मिनी ट्रेक्टर से प्रतिदिन 10 हेक्टर जमीन की जुताई की जा सकती हैं। अब खेती में अधिक पैदावार के लिए हाइब्रीड बीजों का उपयोग बढ़ गया है। अधिक पैदावार वाली हाइब्रीड 807, 837, 2233, 786, 6201, 6444, आई आर-20, जी आर- 4/11, जया,जी5, जी12, मैसुरी प्रजातियां खेतों में अधिक बोई गई हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में कम पानी में जल्दी पकने वाली किस्मों को ज्यादा जगह मिली हैं। यहां ढलान के कारण कंटूर खेती की जाती है। दादरा नगर हवेली में मानसून में 80 प्रतिशत खेतों में धान की बुवाई होती हैं। शेष कृषि क्षेत्र में मूंग, अरहर, नागली, मूंगफली, ज्वार और सब्जियां बोई जाती हंै। कृषि अधिकारियों के अनुसार अधिक उपज के लिए किसान पेडी के संकर बीज बोते हैं। हाइब्रीड बीज सामान्य बीजों की अपेक्षा 25 से 30 प्रतिशत बीज पर्याप्त रहते हैं। मूंग की अधिक उपज वाली पूसा 0672 व पूसा 9531 प्रजातियों की खेती पर्वतीय क्षेत्र खानवेल, रूदाना, मांदोनी, सिंदोनी में अधिक होती हैं।
खेतों में खरपतवार सप्ताहभर में अच्छी बारिश के चलते खेतों में खरपतवार उग आई हैं। खेतों में बार-बार धान की फसल लेने से खरपतवार की तादाद बढ़ जाती है। खरपतवार में घास परिवार, मोथा प्रजाति व चौड़ी पत्ती वाले शामिल हैं। आंबोली निवासी दिलीप वालिया ने बताया कि खरपतवार बढऩे से धान की वृद्धि रूक जाती हैं। बारिश में खरपतवार निकालना मुश्किल हो रहा है। भरपूर बारिश से अगेती फसलें तेजी से वृद्धि कर रही हैं।