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स्कीम के नफा-नुकसान पर मेराथन बैठकें

locationसूरतPublished: Feb 06, 2019 09:36:22 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

कपड़ा व्यापारी चेतने लगे, स्कीम नहीं देने के समर्थन में आने लगे फर्मों के सहमति-पत्र

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स्कीम के नफा-नुकसान पर मेराथन बैठकें

सूरत. व्यापार में तेज तरक्की के फार्मूले कई बार मुसीबत भी पैदा कर देते है। ऐसे ही मुसीबत भरे फार्मूले से सूरत के कपड़ा व्यापारी अब परेशान होने लगे है और उससे दूर रहने के तरीके आजमाने लगे है। मेला स्कीम के नफे-नुकसान पर मेराथन बैठकों में चिंतन के बाद अब भविष्य में स्कीम नहीं देने के समर्थन में व्यापारिक फर्मों के सहमति-पत्र मंगवाए जाने लगे है।
पिछले दिनों बिहार की बड़ी कपड़ा मंडी पटना से कपड़ा व्यापारी, आढ़तिया व एजेंटों का एक दल सूरत आया था और उन्होंने स्थानीय कपड़ा व्यापारियों के साथ मेला स्कीम के संबंध में जरूरी बैठक की और बाद में इसमें साउथ गुजरात टैक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन भी सक्रिय हुई। एसोसिएशन ने सहयोगी सदस्य कपड़ा व्यापारियों के साथ मेराथन बैठकें आयोजित कर मेला स्कीम के नफा-नुकसान पर लम्बी चर्चा की। बड़े स्तर पर व्यापारिक चिंतन के बाद पांच बिन्दू तय किए गए और इनके समर्थन में व्यापारिक फर्मों से सहमति-पत्र मंगवाने की प्रक्रिया शुरू की गई। स्थानीय कपड़ा मंडी की टॉप हंड्रेड ब्रांड को पहले इस मुहिम में शामिल किया गया है और बताया है कि अभी तक करीब 30 फर्मों की ओर से सहमति-पत्र मिल गए है।

इन पर बना रहे है सहमति


एसजीटीटीए की बैठक में मेला स्कीम को कपड़ा कारोबार के लिए नुकसानदेह मानकर पांच बिन्दू तय किए गए है। इनके प्रति सहमत होने पर व्यापारिक फर्में सहमति पत्र भेज रही है। इसमें शामिल बिन्दू इस तरह से है।
1- कोई भी सप्लायर सालभर किसी भी प्रकार की कोई स्कीम नहीं निकालेगा और वह किसी हॉलसेलर की निकाली स्कीम में अपना योगदान भी नहीं देगा।
2- रिटेल कांफ्रेंस (मेला) में कोई भी सप्लायर भाग नहीं लेगा।
3- अगर कोई भी हॉलसेलर इसके बावजूद स्कीम निकालता है तो उस स्कीम के अन्तर्गत सहमति देने वाले ब्रांड का कपड़ा नहीं बिकेगा।
4- कोई इंडीव्युजल स्कीम सप्लायर, एजेंट या आढ़तिया नहीं निकालेगा।
5- किसी भी प्रकार की शिफ्टिंग, दुकान ओपनिंग या एनिवर्सरी में कोई स्कीम नहीं दी जाएगी।
बसना पूजन से हुई थी शुरुआत


मेला स्कीम के तहत कपड़ा कारोबार की शुरुआत 25 वर्ष पहले वसंत पंचमी के अवसर पर बनारस कपड़ा मंडी में बसना पूजन के रूप में की गई थी। धीरे-धीरे यह उत्तरप्रदेश व बाद में बिहार और अब पूरे देशभर मेला स्कीम के रूप में यह प्रचलित हो गई है। बीते कल तक इसके व्यापारिक फायदे थे मगर आज इससे कपड़ा कारोबार को स्थानीय व बाहरी मंडियों के व्यापारी नुकसान के तौर पर आंकने लगे है। बताया है कि करीब दस वर्ष पहले भी ऐसे लुभावने व्यापार की मेला स्कीम को बंद करने का प्रयास कपड़ा व्यापारियों ने स्थानीय स्तर पर किया था मगर सफलता नहीं मिल पाई थी।

दृढ़निश्चय से ही संभव


कपड़ा व्यापार में मेला स्कीम लुभावने तरीके है जिससे फायदे कम नुकसान ही ज्यादा है। इनसे दूर रहने के लिए सर्वप्रथम सूरत मंडी के कपड़ा उद्यमियों को दृढ़निश्चय से यह फैसला करना होगा कि वे ऐसी लुभावनी स्कीमों से सदैव दूर रहेंगे।
संजय सरावगी, कपड़ा उद्यमी

सकारात्मक दिशा में पहल


बड़े व्यापारिक नुकसान को ध्यान में रख एसजीटीटीए की अगुवाई में यह पहल की गई है और इसको स्थानीय स्तर पर कपड़ा व्यापारियों से अच्छा समर्थन मिल रहा है। फिलहाल मेला स्कीम में भाग लेने वाले सभी सप्लायर व हॉलसेलर से सहमति पत्र लिए जा रहे है।
सचिन अग्रवाल, सदस्य, एसजीटीटीए कमेटी

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