नर्मदा परिक्रमा शुरू करने का उत्तम समय शरद पूर्णिमा माना जाता है, ताकि चार्तुमास के समय रुकने में कोई दिक्कत न हो। प्रति वर्ष डेढ़ लाख से ज्यादा परिक्रमावासी अमरकंटक से परिक्रमा की शुरुआत करते हैं और परिक्रमा का समापन भरुच जिले की हांसोट तहसील के वमलेश्वर गांव में आकर नौका में सवार होकर नर्मदा पार करके दहेज मीठी तलावडी में जाकर करते हैं। परिक्रमा के समय प्राकृ तिक आपदा से परिक्रमा वासियों को बचाने के लिए शास्त्रोक्त विधि से नर्मदा माता की पूजा की गई।
तीन तरह से शुरू होती है परिक्रमा
नर्मदा की परिक्रमा तीन तरह से शुरू होती है। प्रथम परिक्रमा मध्यप्रदेश के अमरकंटक से शुरू होती है और अमरकंटक में ही जाकर समाप्त होती है। दूसरे प्रकार में परिक्रमा की शुरुआत ओमकारेश्वर से होती है और ओमकारेश्वर में ही परिक्रमा पूर्ण होती है। तीसरे प्रकार में नर्मदा नदी किनारे जहां से परिक्रमा शुरू हो वही पर समाप्त की जाती है। पूरी नर्मदा परिक्रमा के दौरान भक्तों को 2 हजार 748 किमी की दूरी तय करनी होती है।
परिक्रमा 3 वर्ष, 13 माह व 13 दिन में होती है पूर्ण
सबसे पहले पदयात्रा परिक्रमा होती है। पदयात्रा परिक्रमा में तीर्थों में तीन दिन का ठहराव, धाम में सात दिन का ठहराव और चातुर्मास में परिक्रमा नहीं करनी होती है। इस परिक्रमा को पूरा करने में तीन वर्ष तीन माह और १३ दिन लगता है। दूसरे प्रकार में व्यक्ति को तीर्थ, धाम और चार्तुमास के नियम नहीं लागू होते हैं तथा इस परिक्रमा को पूरा करने में १०० से १०८ दिन का वक्त लगता है। तीसरी परिक्रमा खंड परिक्रमा के नाम से जानी जाती है और इसमें भक्तगण टुकड़े-टुकड़े में परिक्रमा पूरी करते हैं।
सबसे पहले पदयात्रा परिक्रमा होती है। पदयात्रा परिक्रमा में तीर्थों में तीन दिन का ठहराव, धाम में सात दिन का ठहराव और चातुर्मास में परिक्रमा नहीं करनी होती है। इस परिक्रमा को पूरा करने में तीन वर्ष तीन माह और १३ दिन लगता है। दूसरे प्रकार में व्यक्ति को तीर्थ, धाम और चार्तुमास के नियम नहीं लागू होते हैं तथा इस परिक्रमा को पूरा करने में १०० से १०८ दिन का वक्त लगता है। तीसरी परिक्रमा खंड परिक्रमा के नाम से जानी जाती है और इसमें भक्तगण टुकड़े-टुकड़े में परिक्रमा पूरी करते हैं।
परिक्रमा वासियों को भीक्षा मांगकर करना पड़ता है भोजन
नर्मदा परिक्रमा में भोजन का भी अलग नियम है। परिक्रमावासी खरीद कर भोजन नहीं कर सकता। परिक्रमावासी को भोजन भीक्षा मांगकर ही करना होता है व इसमें भी मात्र पांच घर तक ही भीख मांगनी होती है। एक भी घर से अगर परिक्रमावासी को भीक्षा नहीं मिलती है तो उसे उस दिन भूखा ही रहना पड़ता है।