जानकारों की माने तो ऐसा शहर में बेलगाम ध्वनि प्रदूषण की वजह से होता है। कपड़ा नगरी सूरत में चौबीस घंटे लूम मशीनों की खडख़डाहट गूंजती रहती है, जो असहजता और चिड़चिड़ाहट पैदा कर देती है। इससे सबसे अधिक प्रभावित भी लूम कारखानों में काम करने वाले श्रमिक, कर्मचारी और आसपास रहने वाले लोग होते हैं। लंबे समय से धीरे-धीरे कपड़ा उद्योग शहर में विकसित हुआ।
पुराने जमाने में शहर दायरा सिर्फ परकोटा क्षेत्र तक समिति था। तब से कई लूम कारखाने परकोटा क्षेत्र के रिहायशी इलाकों में भी चल रहे हैं। बाद में जैसे- जैसे उद्योग बढऩे के साथ- साथ शहर का विकास हुआ तब शहर के बाहरी इलाकों में नए औद्योगिक क्षेत्र भी बनाए। इन औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पावर लूम कारखाने खुले और सूरत शहर को सिल्कसिटी के रूप में देश और दुनिया में पहचान दिलाई है।
ये इलाके हैं सबसे अधिक प्रभावित :
ये इलाके हैं सबसे अधिक प्रभावित :
जानकारों के मुताबिक पहले से ही परकोटा क्षेत्र के कई घरों में लूम कारखाने चल रहे हैं। कई जगहों पर तो यह आज भी जारी है। ऐसे अधिकतर घरों में भूतल पर लूम ईकाइयां हैं और ऊपर की मंजिलों पर मालिक व मजदूरों के परिवार पीढिय़ों से रहते हैं। पीढियों से ऐसे माहौल में रहने के कारण कई लोग ऊंचा बोलने और सुनने के आदि हो गए हैं।
बाद में शहर के आसपास कतारगाम, पांडेसरा, सचिन, भाठेना, आंजणा समेत शहर की अन्य छोटे बड़े औद्योगिक क्षेत्र भी पिछले दो-तीन दशकों में शहर के विकास और आबादी बढऩे के कारण रिहायशी इलाकों के बीच आ गए है। इन इलाकों में तो कई सोसायटियां लूम कारखानों के ठीक बगल में बनी हैं। इन सोसायटियों में रहने वाले कई लोग भी चौबिस घंटे खडख़डाहट सुन कर ऐसे माहौल के आदि हो गए हैं।
6 लाख पावर लूम मशीनें सूरत में :
6 लाख पावर लूम मशीनें सूरत में :
एक अनुमान के मुताबिक, सूरत के कपड़ा उद्योग में 6 लाख पावर लूम मशीनें, 50 हजार एम्ब्रोयडरी मशीनें, 450 प्रोसेसिंग ईकाइयां, 75 हजार कारोबारी, 200 के करीब होलसेल मार्केट हैं। इनमें कपड़े की बुनाई करने वाले पावर लूम यूनिटों में सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण होता है। पावरलूम मशीनें तेज आवाज में बजती रहती है।
ऐसे में इनमें कार्यरत लोगों व आसपास रहने वाले लोगों के लिए सामान्य स्वर में बात करना मुश्किल हो जाता है। उन्हें बहुत तेज आवाज में बोलना पड़ता है। लंबे समय तक इसी तरह के माहौल में रहने के कारण तेज आवाज में बात करना उनकी आदत में शामिल हो जाता है। ऐसे में जब वे कारखानों के बाहर भी होते हैं, तब भी बात करने का टोन वैसा ही रहता है।
गंभीरता से नहीं लेते, जांच के लिए नहीं आते :
न्यू सिविल अस्पताल के ईएनटी विभाग के सहायक प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया कि यदि ध्वनि प्रदूषण 90 डेसिबल से अधिक हो तो यह आपके सुनने की क्षमता पर असर डालता है। अल्पकालिक असर में आपकी सुनने की क्षमता कुछ समय के लिए प्रभावित होती हैं। प्रदूषण वाली जगह से निकलने के बाद भी कुछ घंटे तक आपको ठीक से सुनाई नहीं देता। लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण झेलने पर स्थाई रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
गंभीरता से नहीं लेते, जांच के लिए नहीं आते :
न्यू सिविल अस्पताल के ईएनटी विभाग के सहायक प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया कि यदि ध्वनि प्रदूषण 90 डेसिबल से अधिक हो तो यह आपके सुनने की क्षमता पर असर डालता है। अल्पकालिक असर में आपकी सुनने की क्षमता कुछ समय के लिए प्रभावित होती हैं। प्रदूषण वाली जगह से निकलने के बाद भी कुछ घंटे तक आपको ठीक से सुनाई नहीं देता। लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण झेलने पर स्थाई रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
अति गंभीर मामलों में व्यक्ति पूरी तरह बहरा भी हो सकता है और उसकी सोचने समझने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। उसके स्वभाव पर भी इसका विपरित असर पर पड़ता है और चिड़चिड़ापन भी महसूस होता है। शहर के औद्योगिक श्रमिक और कामगार इसके शिकार होते हैं, लेकिन वे इसे गंभीरता से नहीं लेते है। जांच नहीं करवाते है।
रिहायशी इलाकों में अधिक है ध्वनि प्रदूषण का स्तर :
रिहायशी इलाकों में अधिक है ध्वनि प्रदूषण का स्तर :
ध्वनि प्रदूषण पर रिसर्च करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल इंस्टट्युट ऑफ टेक्नोलॉजी (एसवीएनआईटी) डॉ. दीपेश सोनाविया ने बताया कि शहर के रिहायशी इलाकों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर 75 हैं जो निर्धारित मापदंडों से कहीं आधिक है और जो रिहायशी इलाके औद्योगिक ईकाइयों के पास है वहां यह खतरनाक स्तर से भी अधिक है।