उसके बाद बरसों से उपेक्षित पड़ी ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की सहूलियत ने लोगों को भरोसा दिया कि खाते में पैसा है तो फिर चिंता कैसी। कई नए पेमेंट एप बाजार में आए और उनके पीछे-पीछे सरकारी एप भीम ने दस्तक दी तो आर्थिक लेन-देन के डिजिटल होने का रास्ता साफ हो गया। दो साल बाद हालत यह है कि कई लोगों को जेब में रखे रुपए बोझ लगते हैं और भुगतान के लिए उन्हें पेमेंट एप या कार्ड का विकल्प आसान लगता है। इन एप्स ने नोटबंदी से जूझ रहे लोगों की जिंदगी को पहले आसान बनाया और अब पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २०१६ में ८ नवंबर को रात आठ बजे जब अचानक नोटबंदी का ऐलान करते हुए पांच सौ और हजार के नोट को चलन से बाहर करने का ऐलान किया था, पूरा देश स्तब्ध रह गया था। जो लोग घर से बाहर दूसरे शहरों में थे, उनके समक्ष नकदी का संकट खड़ा हो गया था। कई महीने बाद तक हालत यह थी कि लोगों के पास जेब में चाय तक के पैसे नहीं होते थे। एटीएम में नकदी बाद में डाली जाती थी, उसे निकालने वालों की भीड़ पहले बाहर खड़ी रहती थी। कतार में लगने के बावजूद उस वक्त अधिकांश लोगों को खाली हाथ वापस लौटना पड़ता था।
नोटबंदी ने मोबाइल पर आर्थिक क्रांति की राह दिखाई। मनी मैनेजमेंट के लिए मोबाइल वॉलेट और यूपीआइ बाजार में आए तो नकदी के संकट से जूझ रहे लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। मोबाइल पर भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भीम एप लांच किया। इसके साथ ही राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों ने भी अपने यूपीआइ लांच कर दिए। लोगों को इन यूपीआइ से जोडऩे के लिए बैंक प्रबंधन ने आक्रामक मार्केटिंग की। आज भुगतान के लिए लोगों की इन पर निर्भरता बढ़ी है। बैंकों में नकदी निकालने और जमा करने वालों की कतारें घटने लगी हैं। लोग बैंकों में जाने के बजाय घर बैठे मनी ट्रांसफर या भुगतान करने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
आसान हुई बैंकिंग
नोटबंदी के शुरुआती महीने आम आदमी ही नहीं, बैंकों के लिए भी मुश्किल भरे थे। धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटी और लोगों ने नकदी से निर्भरता हटाते हुए पेमेंट एप को भुगतान का जरिया बनाया। नोटबंदी का बड़ा लाभ यह हुआ कि लोगों का डिजिटलाइजेशन की तरफ रुझान बढ़ा है। अब बैंकों में लंबी कतारें नहीं लगतीं।अनिल दुबे, अधिकारी, बैंक ऑफ इंडिया, वेसू, सूरत