कामरेज तहसील में कुछ दिनों से केले की फसल में सुकारा का रोग फैलने की जानकारी के बाद सूरत कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.एस.के. चावड़ा, नवसारी कृषि यूनिवर्सिटी के रोग शास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ. के.बी. राखोलिया, गणदेवी संशोधन केंद्र के वैज्ञानिक बी.एम. नायक और बगायत नियामक डी.के. पडालिया ने खेतों में लगे केले की फसलों का निरीक्षण किया था। कृषि वैज्ञानिकों ने रोग के निदान के लिए सैम्पल लेकर यूनिवर्सिटी के रोग शास्त्र विभाग में परीक्षण करने पर फ्यूजरियम नामक फुग से होने वाला सुकारा रोग होने की पुष्टि हुई। रोग काफी तीव्र होने के कारण यह रोग फ्यूजरियम नामक फुग की कौनसी प्रजाति से है इसको जानना जरूरी था।
इसको लेकर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. थांगावेलु से संपर्क किया गया। उन्होंने कामरेज केला मंडली के प्रमुख छितु पटेल के साथ मिलकर रोगग्रस्त खेतों में लगे केले की फसलों का निरीक्षण किया। इसके बाद वापस सैम्पल लेकर तिरुचिरापल्ली की लैब में जांच करने पर यह रोग ‘पनामा बिल्ट’ (फ्यूजरियम ऑक्सीस्पोरम एफ.स्पी. क्यूबेन्स) की चार प्रजाति में से एक होने की पुष्टि हुई। यह रोग दुनियां के कई देशों में दिखने को मिलता है और फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस रोग का समय पर निदान और नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है इस बारे में जानने के लिए सूरत कृषि विज्ञान केंद्र का संपर्क करने को कहा गया है।
बचाव के उपाय कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पनामा बिल्ट मिट्टीजनित रोग है। इससे बचाव के लिए पौधे लगाने के समय ही किया जा सकता है। बाद में नए पौधे में यह रोग नहीं लगे, इसके लिए कार्बन डेजीन (बायवेस्टिन) 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण एक एमएल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें सस्ता शैंपू मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं केले की फसल को रोग से बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (फाइटीलॉन) का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।