पांडेसरा जीआइडीसी में 70 प्रतिशत डाइंग यूनिट 30 साल पुरानी!
प्रदीप मिश्रा
पांडेसरा जीआइडीसी में शुक्रवार रात डाइंग-प्रिन्टिंग मिल का स्लैब गिरने से हुई दुर्घटना यूनिट संचालकों के लिए खतरे के समान है। इस घटना से उद्यमियों ने सबक नहीं सीखा तो आगामी दिनों में इससे भी बड़ी दुर्घटना के लिए तैयार रहना होना।
पांडेसरा जीआइडीसी की ज्यादातर मिलें 30 साल पुरानी हैं। इन्हें मरम्मत की जरूरत है। जब मशीनें लगाई गई थीं तब संचालकों ने सिर्फ चार-पांच मशीनों के अनुसार ढांचा तैयार करवाया था। आय बढऩे पर मशीनों की संख्या भी बढ़ा दी। एक मशीन 10 टन से अधिक की होती है। ऐसी चार या पांच मशीनें बढ़ा देने से स्लैब पर भी भार बढ़ा है। समय के साथ बिल्डिंग का ढांचा भी कमजोर होता जा रहा है। बताया जा रहा है कि डाइंग-प्रिन्टिंग मिल में कपड़ों पर डाइंग और प्रिन्टिंग के लिए कलर केमिकल और एसिड वाले पानी का इस्तेमाल दिन-रात किया जाता है जो कि दीवार, पाइप आदि को धीरे-धीरे कमजोर करता है। यहां पर हैवी मशीनें चलने से बाइब्रेशन के कारण दीवारों और स्लैब पर असर पड़ता है। नियमानुसार मिल मालिकों को हर महीने में एक-दो दिन तक यूनिट बंद कर मशीन, आधारभूत व्यवस्थाओं और मजबूती की जांच करानी चाहिए।
कमाने के लोभ में प्रोसेसर्स यूनिट बंद नहीं करना चाहते और मरम्मत का काम नहीं होता। इधर प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं देता। यूनिट संचालक इन बातों को जानते हुए भी लापरवाही बरतते हैं। एक बार बॉयलर बंद करने पर लाखों रुपए का खर्च होता है। इसलिए यूनिट संचालक लाखों रुपए बचाने के चक्कर में श्रमिकों की जान की भी परवाह नहीं करते हैं। हालांकि पांडेसरा इंडस्ट्रियल सोसायटी के प्रमुख कमल विजय तुलस्यान दावा करते हैं कि पांडेसरा जीआइडीसी के यूनिट संचालक कारखाने से जुड़े सभी नियम-कायदों का पालन करते
हैं और श्रमिकों के प्रति संवदेनशील हैं।
विशेषज्ञों के नहीं लेते सुझाव
बॉयलर तथा इलेक्ट्रिसिटी आदि की व्यवस्था के लिए प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है। कई मिल मालिक रुपए बचाने के लिए किसी एजेंसी या कन्सलटेन्ट की सहायता लिए बिना कम कीमत में काम करते हैं जो कि हादसे को निमंत्रण देते हैं। कमजोर क्वालिटी वाले वायर, बिजली के स्वीच और अन्य उपकरण में शॉर्ट सर्किट जल्दी होता है। दुर्घटना का सबसे बड़ा स्थान बॉयलर के पाइपलाइन होते हैं। कई बार इनमें पॉलिएस्टर कपड़ों के कण फंस जाते हैं जो भाप से जल उठते हैं और बाद में बड़ी आग का कारण बन जाते हैं।