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Surat Corona : पिड्याट्रिक डॉक्टरों के ‘गाइड’ का कोरोना से निधन

locationसूरतPublished: Aug 11, 2020 10:34:02 pm

Submitted by:

Sanjeev Kumar Singh

– सूरत में चौथे और गुजरात में 24वें डॉक्टर की मौत…
– देश-विदेश में डेंगू, मलेरिया और विटामिन-डी पर कई सेमिनार में किया संबोधन
– आठ दिन पहले वेंटिलेटर से हटाया, कुछ घंटे बाद ही तबीयत बिगड़ी, फिर वेंटिलेटर पर किया था भर्ती
 

Surat Corona :  पिड्याट्रिक डॉक्टरों के ‘गाइड’ का कोरोना से निधन

Surat Corona : पिड्याट्रिक डॉक्टरों के ‘गाइड’ का कोरोना से निधन

सूरत.

शहर में कोरोना वायरस ने एक और जाने- माने पिड्याट्रिशियन डॉ. अशोक काप्से की जान ले ली। उन्होंने रविवार को निजी अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ा। डॉ. काप्से ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेंगू और मलेरिया को लेकर कई सेमिनार में लैक्चर दिए थे। सूरत के सभी पिड्याट्रिशियन डॉ. काप्से को अपना ‘गाइड’ मानते थे। अप्रेल में कोरोना के मरीज बढऩे पर उन्होंने ही सबसे पहले प्लाज्मा थैरेपी को सूरत लाने के लिए प्रयास शुरू किए थे। अब तक सूरत में चौथे और गुजरात में 24वें डॉक्टर की कोरोना वायरस से मौत हुई है।
नानपुरा अक्षर कॉम्पलेक्स काप्से चिल्ड्रन अस्पताल के डॉ. अशोक काप्से की 3 जुलाई को तबीयत खराब हुई थी। शुरूआती दिनों में बहुत तकलीफ नहीं थी। उन्होंने होम आइसोलेशन में रहते ही उपचार लेने का निर्णय किया। इसी दौरान कुछ दिन बाद उनकी पत्नी भी कोरोना पॉजिटिव आ गई। इसके बाद डॉ. अशोक काप्से को ग्रीन लाइफ अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉ. समीर गामी, अनील पटेल के देखरेख में उनका इलाज चल रहा था।
इलाज के दौरान उनको रेमडेसेविर, टोसिलिजुमाब समेत सभी प्रकार के इंजेक्शन व दवाई दी गई, लेकिन तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था। उनको न्यूमोथोरैक्स हुआ था। यह एक ऐसी स्थिति है जहां फेफड़े के बाहर जरूरत से ज्यादा हवा बन जाती है और इससे इस अंग पर दबाव बढ़ जाता है। इस वजह से फेफड़े को पूरी तरह फैलने का मौका नहीं मिल पाता है। इसी कारण से उनकी तबीयत धीरे-धीरे गंभीर होने लगी थी। उनको रोजाना दो से तीन बार बुखार आता था।
चिकित्सकों ने बताया कि आठ दिन पहले उनकी तबीयत थोड़ी अच्छी हुई थी और वेंटिलेटर से हटा दिया था, लेकिन कुछ घंटे बाद ही तबीयत खराब हो गई और फिर से वेंटिलेटर पर भर्ती करना पड़ गया था। इलाज के दौरान रविवार को डॉ. अशोक काप्से की मौत हो गई। उनकी पत्नी डॉ. अल्का काप्से भी एमबीबीएस डॉक्टर है। जबकि पुत्र डॉ. रूचा रेडियोलॉजिस्ट है। डॉ. काप्से 1980 से पहले तक सूरत गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज में पिड्याट्रिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर थे।
इसके बाद उन्होंने मेडिकल कॉलेज से इस्तिफा दे दिया और झांपा बाजार में काप्से क्लिनिक से प्रेक्टिस की शुरुआत की। बाद में उन्होंने नानपुरा मक्कईपुल के पास चिल्ड्रन अस्पताल शुरू किया था। डॉ. काप्से के मौत की खबर कुछ देर में ही मेडिकल जगत में वायरल हो गई। उन्हें शहर के पिड्याट्रिशियन अपना शिक्षक और गाइड मानते थे। कोरोना वायरस से डॉ. काप्से की मौत को सूरत के लिए ही नहीं, पूरे गुजरात और अंतराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है।

गुजरात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अक्ष्यक्ष डॉ. चंद्रेश जरदोष ने पत्रिका को उनके एक प्रसंग के बारे में बताया कि डॉ. अशोक काप्से 1994 में डॉक्टरों को लैक्चर दे रहे थे, जो रात दस बजे शुरू हुआ और साढ़े बारह बजे खत्म हुआ, लेकिन लेक्चर ऐसा उपयोगी था कि किसी को समय का पता ही नहीं चला। वे अपने ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने का प्रयास करते थे। सूरत में डॉ. काप्से के साथ दो पिड्याट्रिशियन डॉक्टर की मौत हुई है। अब तक सूरत में कोरोना वायरस से चार और गुजरात में 24 डॉक्टरों की मौत हुई है। वहीं, देश में 198 डॉक्टरों की मौत कोरोना से हुई है।
डेंगू, मलेरिया और विटामिन-डी के विशेषज्ञ

छोटे बच्चों के मौत की मुख्य वजह कुपोषण और बैक्ट्रिया व वायरस से फैलने वाली बीमारी होती है। डॉ. अशोक काप्से ने कुपोषण, डेंगू, मलेरिया, न्यूमोनिया और विटामिन-डी पर बहुत रिसर्च किया था। 1988-89 में सूरत में डेंगू के बहुत अधिक मामले सामने आए थे। तब उन्होंने सूरत से नमूने लेकर अमेरिका तक जांच के लिए भेजा था। डेंगू चार प्रकार के होते है और उसके इलाज के बारे में उन्होंने शहर और दक्षिण गुजरात में जाकर पिड्याट्रिशियन को अवगत करवाया।
इसके बाद उन्होंने विटामिन-डी के बारे में भी काफी रिसर्च किया और दूसरे डॉक्टरों को नई जानकारियों से अवगत करवाया। देश की सर्वोच्च संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ पिड्याट्रिक्स में इन्फेक्सियस डिजिज चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके है। उन्होंने इसी संस्था के मुख्य टेक्सबुक में मलेरिया और डेंगू पर अपना लेख लिखा है।
प्लाज्मा थैरेपी सूरत लाने वाले प्रथम डॉक्टर

अप्रेल में कोरोना मरीज बढऩे पर सबसे पहले डॉ. काप्से ने प्लाज्मा थैरेपी सूरत लाने की कार्रवाई शुरू की थी। इबोला बीमारी में प्लाज्मा थैरेपी असरदार साबित हुई थी। उसी तर्ज पर उन्होंने काफी रिसर्च किया और विदेशों में प्लाज्मा थैरेपी को एप्रुवल मिलने के बाद उसे भारत में शुरू करने पर काफी जोर दिया था। कोरोना से जागरूकता के लिए उन्होंने कई वेबिनार में भाग लेकर शहरवासियों को जागरूक किया है।
– डॉ. निर्मल चोरडिय़ा, निर्मल चिल्ड्रन अस्पताल, सूरत

नए रिसर्च डाटा शेयर करते थे

चिकित्सा क्षेत्र में नए शोधों को पढऩा और रिसर्च करना उनकी विशेषता थी। इसके बाद उस ज्ञान को अलग-अलग प्लेटफार्म पर जाकर दूसरे डॉक्टरों तक पहुंचाना उन्हें आम डॉक्टरों से अलग बनाता है। पिछले चार-पांच सालों से वह हर रविवार दूसरे शहरों में जाकर डॉक्टरों के प्लेटफार्म पर अपनी बात रखते थे जिससे दूसरे डॉक्टरों को सीखने को मिलता था।
– डॉ. विमल जरीवाला, अध्यक्ष, पिड्याट्रिक एसोसिएशन, सूरत।

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