सूरत का किला प्राचीन वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है। इसे मुगल काल में (1373) बादशाह फिरोज तुगलक ने भीलों के हमले से सूरत शहर की हिफाजत के लिए बनवाया था। तब किला छोटा था।
दो सदी बाद पुर्तगालियों के हमले बढ़े तो अहमदाबाद के राजा सुलतान महमूद (तृतीय) ने बड़े और मजबूत किले की जरूरत महसूस करते हुए इसको वर्ष 1540 में बड़े किले में तब्दील करवाया।
इसके निर्माण का जिम्मा तुर्की सैनिक साफी आगा को दिया गया, जिन्हें खुदावंद खान के खिताब से नवाजा गया था। बाद में ब्रिटिश शासन काल के दौरान भी किले में कुछ और निर्माण किए गए।
किले के कई हिस्से अभी तक पहेली बने हुए हैं। ब्रिटिश काल के बाद सालों तक किला बंद पड़ा रहा था।
इसमें कई कमरों में सुरंग होने का पता चला। यह गुप्त रास्ते कहां तक फैले हुए हैं, यह अब भी पहेली है।
किले के जीर्णोद्धार में इसके प्राचीन स्वरूप को बरकरार रखा गया है। मुगल काल के तोपखाने और खजाने के साथ यहां कई और प्राचीन निर्माण आकर्षण का केन्द्र होंगे।
किले में एक म्यूजियम भी होगा, जिसमें मुगल और ब्रिटिश काल की कई धरोहरों को रखा जाएगा। इसके साथ ही किले के इतिहास की जानकारी देने के लिए लाइट एंड साउंड शो का भी इंतजाम रहेगा।