तापी में नहीं जमी जलकुंभी
उद्योगों का केमिकल वेस्ट सीधे नदी में नहीं गिरने से बीते दो महीनों में तापी की सतह पर जलकुंभी के जाल तैरते नजर नहीं आए। नदी में वेस्ट गिरना बंद हुआ तो तापी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी। नदी के बहते पानी में ऑक्सीजन की मात्रा (डिसॉल्व ऑक्सीजन लेवल) सात से नौ मिलीग्राम होनी चाहिए। फिलहाल तापी में ऑक्सीजन का यह लेवल बना हुआ है। नर्मदा नदी में भी ऑक्सीजन की मात्रा संतोषजनक स्तर पर आ गई है। अकेले तापी ही नहीं दक्षिण गुजरात की नर्मदा और दमण गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में भी गुणात्मक सुधार हुआ है।स्तर बनाए रखना बड़ी चुनौती
लॉकडाउन के तीन चरणों में साफ हुए हवा-पानी के स्तर को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। तकनीकी विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण अनुकूलन पर शुरू होने वाले खर्च को वहन करने के लिए न सरकार तैयार है और न उद्यमी ही अपने लाभ को कम कर पर्यावरण पर रकम खर्च करना चाहते। यही वजह है कि जैसे जैसे अनलॉक वन गति पकड़ेगा, सबकुछ पहले जैसा होने लगेगा। नदी के पानी में ऑक्सीजन घटेगी तो हवा में भी जहरीली गैसें ऑक्सीजन की मिठास को कम करेंगी। पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि इकोनॉमी को गति देने के लिए पर्यावरण के पहलुओं को सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर नेपथ्य में धकेला जाएगा।यह हों उपाय
कोरोना के संक्रमणकाल ने एक अवसर दिया है कि हम कुछ जरूरी उपाय कर लें तो प्रदूषण के स्तर को ज्यादा फैलने से रोका जा सकता है। उद्यमी बीते 60 दिनों से बंद पड़े अपने उद्यमों की मरम्मत कराने जा रहे हैं। लगे हाथ ऐसे उपाय किए जा सकते हैं, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सके। पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रकृति के बिगड़ते संतुलन को साधने के लिए गंभीर प्रयास करें तो पर्यावरण परिवर्तन के खतरों को न्यूनतम कर सकते हैं। साथ ही कोरोना के खिलाफ जंग अभी मुकाम तक नहीं पहुंची है। इस टैम्पो को बनाए रखना है, जिससे कि हम नुकसान को कम से कम करने में सफल हो पाएं। शहर में जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे कमलेश याग्निक के मुताबिक अवसरों का लाभ उठाकर हम बेहतर दुनिया आने वाली पीढिय़ों को दे पाएंगे। इसके लिए ईमानदार कोशिश करने की जरूरत है।औपचारिक रह गए पर्यावरण संरक्षण के आयोजन
हम भले हर साल पर्यावरण दिवस मनाकर हवा और पानी में घुल रहे जहर पर चिंता जता लेते हों, लेकिन हकीकत यह है कि लापरवाही हर स्तर पर हो रही है। उद्योगों में ही नहीं आम आदमी भी अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल से परहेज बरतते हुए निजी वाहनों को तरजीह दे रहा है। पौधों को रोपकर उन्हें पालने-पोसने की जिम्मेदारी निभाने को कोई तैयार नहीं है। कभी धार्मिक आयोजनों के नाम पर तो कभी सहूलियत के लिए नदी और जल के अन्य प्राकृतिक स्रोतों को गंदा करने से नहीं चूक रहे। हमारी इन गलतियों का खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी।