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सूरत

केंद्र लापरवाह, मनपा के सरोकार भी कमजोर

तापी नदी में लगातार बढ़ रहा प्रदूषण, रोकने के उपाय पर काम नहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की चिंता भी दरकिनार

सूरतSep 02, 2018 / 09:01 pm

विनीत शर्मा

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केंद्र लापरवाह, मनपा के सरोकार भी कमजोर

विनीत शर्मा

सूरत. लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण सूरतीयों की लाइफलाइन तापी लगातार अपनी जीवंतता खो रही है। इसे लेकर केंद्र सरकार तो लापरवाह है ही, मनपा के सरोकार भी कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। एनजीटी के बार-बार आंखें तरेरने के बाद भी सरकारी एजेंसियां तापी की सेहत को लेकर गंभीर नहीं दिख रहीं। औपचारिकताओं के बीच इस मुद्दे से जुड़ा हर व्यक्ति मसला दूसरे के पाले में डाल दे रहा है।
देशभर की जो प्रमुख नदियां प्रदूषण के मानकों को पार कर चुकी हैं, उनमें तापी नदी का नाम भी शामिल है। एनजीटी भी तापी के प्रदूषण को लेकर कई बार आंखें तरेर चुकी है। स्थानीय प्रशासन हो या राज्य और केंद्र में बैठे आला अफसर, तापी में बढ़ रहे प्रदूषण पर एनजीटी की चिंता को गंभीरता से नहीं ले रहे। यही वजह है कि निजी कंपनियों का ही नहीं, मनपा का लिक्विड वेस्ट भी कई जगहों पर सीधे तापी में बहाया जा रहा है।
एनजीटी के बढ़ते दखल के बाद मनपा प्रशासन ने किसी तरह पहल करते हुए तापी शुद्धिकरण के लिए मास्टर प्लान तैयार किया। काकरापार से ओएनजीसी ब्रिज तक तीन फेज में काम होना है, जिसपर करीब ७४१ करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह मास्टर प्लान मंजूरी के लिए पहले राज्य सरकार के पास अटका रहा और अब केंद्र सरकार के पाले में है।
पीने लायक नहीं बचा पानी

सेंट्रल वाटर कमीशन ने करीब तीन वर्ष पूर्व जो रिपोर्ट जारी की थी, उसमें तापी नदी उन शीर्ष नदियों में शामिल थी, प्रदूषण के कारण जिनका पानी सीधे पीने लायक नहीं बचा है। तापी नदी शहर की लाइफलाइन है और पीने के पानी के लिए सूरती इसी पर निर्भर हैं। इसके बावजूद तापी की सेहत से लगातार खिलवाड़ हो रहा है।
धार्मिक आयोजनों ने किया इजाफा

ड्रेनेज और औद्योगिक वेस्ट ने तो तापी की सेहत से खिलवाड़ किया ही, धार्मिक आयोजनों की भूमिका भी कम नहीं है। तापी की पूजा-अर्चना के नाम पर हर साल नदी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है। गणेश महोत्सव समेत वर्षभर में ऐसे कई आयोजन होते हैं, जिसमें प्रतिमाओं का विसर्जन नदी जल में किया जाता है। तमाम प्रयासों के बावजूद हजारों ऐसी प्रतिमाएं नदी में विसर्जित की जाती हैं, जो पीओपी निर्मित हैं। इन प्रतिमाओं रंगों का जहर पानी की गुणवत्ता ही नहीं बिगाड़ रहा, जलीय जीवों के जीवन पर भी संकट मंडराने लगा है। पर्यावरण संरक्षण की नियामक संस्था नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तापी की सेहत से हो रहे खिलवाड़ को रोकने के लिए जो गाइडलाइन जारी की थीं, फाइलों में धूल फांक रही हैं।
ठहरी हुई झील में तब्दील तापी

नदी समुद्र में गिरती है तो अपने साथ रास्तेभर की गंदगी को भी साथ बहा ले जाती है। इससे नदी जल की निर्मलता बनी रहती है। सूरत में सिंगणपोर पर कोजवे बनाकर नदी के प्रवाह को रोक दिया गया है। इसके बाद से शहरी क्षेत्र में नदी एक ठहरी हुई झील में तब्दील हो गई है, जिसके जल की जीवनी शक्ति लगातार कमजोर हो रही है। नदी में गिरता केमिकल और ड्रेनेज वेस्ट इसे लगातार और कमजोर कर रहा है।
इस तरह होता है सेहत से खिलवाड़

तापी नदी शहर की लाइफलाइन है और पीने के पानी के लिए सूरती इसी पर निर्भर हैं। इसके बावजूद नदी की सेहत से लगातार खिलवाड़ हो रहा है। कभी धार्मिक आयोजनों के बहाने तो कभी आल्टरनेट विकल्प के अभाव में गटर का गंदा पानी ट्रीट किए बिना ही नदी में बहा दिया जाता है। गणपति महोत्सव हो या फिर अन्य आयोजन, धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर हर साल तापी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है।
तापी स्मरणे पाप नाश्यति

देशभर में जितनी भी नदियां प्रवाह में हैंं, उनका पुराणों में जिक्र है। तापी अकेली नदी, जिसका महत्व समझाने के लिए पूरा पुराण लिखा गया। तापी पुराण में ‘गंगा स्नाने, नर्मदा दर्शनेश्चव, तापी स्मरणे पाप नाश्यति’ मंत्र के माध्यम से तापी की महत्ता बताई गई है। इस मंत्र के मुताबिक गंगा में स्नान और नर्मदा में दर्शन से पाप का नाश होता है, जबकि तापी के स्मरण मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। तापी का सौंदर्य थाई राजा को इतना भाया था कि उसने अपने देश में सूरत के नाम पर शहर बसाया और उसके किनारे बह रही नदी का नाम तापी रख दिया था।
कोजवे पर प्रवाह रोकना बड़ी भूल

किताबों में भले लिखा हो कि तापी सूरत के डुमस में समुद्र से मिलती है, लेकिन हकीकत यह है कि डुमस से करीब 15 किमी पहले ही तापी के प्रवाह को बांध दिया गया है। वर्ष 1995 में सिंगणपोर पर कोजवे बनाकर तापी को वहीं रोक लिया गया। हालांकि यह फैसला वक्त की जरूरत को देखते हुए किया गया था। जानकारों के मुताबिक कोजवे से पहले नदी में गिरने वाली गंदगी तापी के बहाव के साथ समुद्र में चली जाती थी।
पत्रिका ने बार-बार उठाया मुद्दा

तापी शुद्धिकरण को अभियान के रूप में राजस्थान पत्रिका ने बार-बार उठाया है। इन खबरों को लेकर सामाजिक संस्थाएं तो सक्रिय होती हैं, लेकिन स्थानीय और राज्य स्तर पर प्रशासनिक मशीनरी हर बार तापी नदी को लेकर असंवेदनशील रही है। पत्रिका ने सिलसिलेवार खबरें छापकर अभियान भी चलाया था, जिसके बाद शहर भाजपा इकाई ने तापी शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था।
एनजीओ ने यह उठाए मुद्दे

-तापी में जल प्रदूषण की स्थिति लगातार खराब हो रही है। सूरत मनपा की ओर से कोई कार्रवई नहीं हो रही।
-मनपा पर पर्यावरण संरक्षण के कानून के उल्लंघन का आरोप
-तापी नदी में और नदी के आस-पास पानी को प्रदूषित करने वाले कारकों को रोकने में मनपा असफल
-नदी के पट की क्षमता कम हो रही है। जलीय वनस्पतियां उग रही हैं। इससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। जिससे मच्छरों की उत्पत्ति हो रही है जो तापी किनारे रह रहे लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है।
-गटर का पानी सीधे तापी में छोड़ा जा रहा है।
-प्रदूषण और वनस्पति के कारण कछुआ, मछली और अन्य जलचरों का अस्तित्व संकट में।
यह दी हिदायत

एनजीओ ने एनजीटी में दाखिल ईआइएल में नदी के पट का नक्शा बनाने, नदी के पट क्षेत्र में हो रहे अवैध कामों को रोकने, नदी में छोड़े जा रहे गंदे पानी को रोकने, नदी के प्रदूषण को लेकर स्टेटस रिपोर्ट तैयार कर सार्वजनिक किए जाने की हिदायत दी है।

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