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सूरत

गैस की अनिवार्य व्यवस्था करने से प्रदूषण का समाधान संभव

कोयले के अत्यधिक इस्तेमाल से आसपास के क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

सूरतDec 09, 2018 / 07:56 pm

Pradeep Mishra

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गैस की अनिवार्य व्यवस्था करने से प्रदूषण का समाधान संभव

सूरत
एक ओर सरकार जहां प्रदूषण कम करने की दुहाई दे रही है और स्वास्थ्य योजनाओं के लिए करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन यदि सरकार इसके मूल तक जाए तो समस्या खुद दूर हो सकती है। उद्योगों में कोयले के अत्यधिक इस्तेमाल से आसपास के क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। सरकार यदि गैस की व्यवस्था अनिवार्य कर दे तो प्रदूषण की बड़ी वजह समाप्त हो सकती है। उद्यमियों का कहना है कि पांडेसरा जीआइडीसी के उद्यमियों ने कुछ वर्षों पहले प्रदूषण रोकने के लिए गैस आधारित व्यवस्था अपनाई थी। लगभग 10 वर्ष पहले गैस कंपनी ने उद्यमियों से गैस आपूर्ति करने का आश्वासन दिया। उस समय 8 रुपए और टैक्स के अनुसार गैस मिलती थी तब सूरत के उद्यमियों ने करोड़ों रुपए के खर्च से अपनी कोयला आधारित व्यवस्था बदल दी और गैस पर चले गए, लेकिन इसके बाद गैस कंपनी ने लगातार दाम बढ़ाए। जो कि उद्यमियों की पहुंच से बाहर थे। गैस कंपनी से बार-बार गुहार के बाद भी कोई उपाय नहीं मिलने से उद्यमियों ने फिर से करोड़ों खर्च कर कोयले का उपयोग शुरू कर दिया। इसके बाद फिर से वही धुआं और वायु प्रदूषण की समस्या होने लगी। इन दिनों गैस की कीमत करीब 40 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर है। उद्यमियों का मानना है कि सरकार यदि रियायती दर पर गैस उपलब्ध कराए या फिर कोई अन्य व्यवस्था करे तो कोयले के प्रदूषण का ग्रहण दूर हो सकता है।
जीपीसीबी मॉनिटरिंग खानापूर्ति भर की

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कोयला आधारित इस व्यवस्था के चलते सरकारी तंत्र ने इससे होने वाले प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए नियम तो बनाए हैं, लेकिन वे मात्र खानापूर्ति ही हैं। जीपीसीबी और पांडेसरा के औद्योगिक एसोसिएशन ने चिमनी पर कैमरे भी लगाए हैं, लेकिन उनकी मॉनिटरिंग खानापूर्ति भर की है। जीपीसीबी के अधिकारियों का दावा है कि प्रदूषण नियंत्रण में है, लेकिन कई इकाइयों की यूनिट से अभी भी बगैर ट्रीटमेन्ट के काला धुआं आसमान में छोड़ा जाता है, जो वायु प्रदूषण फैलाता है। कुछ उद्यमी कोयले के स्थान पर मनमाने ढंग से अन्य चीजों का इस्तेमाल भी करते बताए जाते हैं। इसका धुआं सेहत और वातावरण के लिए बेहद हानिकारक है।

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