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पिछले दरवाजे से सत्ता की दस्तक

locationसूरतPublished: Sep 19, 2018 08:17:12 pm

दो एसटीपी को पहले मुल्तवी रखने का मामला

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पिछले दरवाजे से सत्ता की दस्तक

विनीत शर्मा

विशेषाधिकार का इस्तेमाल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। मौजूदा दौर में यह आत्म तुष्टि का एक हथियार बन गया है। पिछले दिनों पर्यूषण पर्व एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सम्मान की सीख देकर गया था। हम खुद को ही सर्वस्व मान बैठे हैं, शायद इसीलिए विशेषाधिकार हमारे अहम को संतुष्टि का साधन बन गया है। उपमहापौर के विशेषाधिकार के तहत सोमवार को हुई गटर समिति की विशेष बैठक कई संकेत देने के साथ ही भविष्य की राह भी खोल गई है। आने वाले कल में यह राह खतरनाक भी साबित हो सकती है। इस बैठक ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
आखिर ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी कि दो प्रस्ताव मुल्तवी रखते ही उपमहापौर को विशेषाधिकार का इस्तेमाल करना पड़ गया। क्या यह पहला अवसर था, जब किसी बैठक में किसी प्रस्ताव को मुल्तवी रखा गया हो। शहर हित के नाम पर पूर्व में कई बार स्थाई समिति और अन्य समितियों में बड़े महत्व के काम मुल्तवी ही नहीं किए गए, उन्हें दाखिल दफ्तर करने में भी समिति प्रमुखों ने हिचक नहीं दिखाई। यहां तक कि एनजीटी की सलाह को दरकिनार कर उद्योगों से निकलने वाले कचरे के डिस्पोजल का प्रस्ताव स्थाई समिति की फाइल में बंद पड़ा है।
जानकार बताते हैं कि एक शीर्ष भाजपा नेता और पूर्व सांसद के दबाव में यह प्रस्ताव धूल फांक रहा है। उनके मुताबिक इसका हिडिन एजेंडा उद्यमियों को आर्थिक सुरक्षा देना था। प्रस्ताव के मुताबिक उद्यमियों से कचरा डंपिंग का चार्ज वसूला जाना था, लेकिन उद्यमी चुनावों में ही इतनी धनगंगा बहा चुके थे कि वह शहर की जरूरतों को संरक्षित रखने के मूड में नहीं थे। उनके हित साधने के लिए ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। माना कि सुएज ट्रीटमेंट भी भविष्य की बड़ी जरूरत है, लेकिन पर्यावरण का दंश झेल रहे सूरत के लिए औद्योगिक कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण प्राथमिकता पर होना चाहिए। यह एक बानगी है। पाल-उमरा ब्रिज का काम सिर्फ इसलिए अटका पड़ा है कि सत्तापक्ष में इच्छा शक्ति की कमी है। बार-बार यह प्रस्ताव स्थाई समिति में आया, लेकिन किसी न किसी बहाने आगे की तारीखों के लिए खिसक गया। ब्रिज लगभग बनकर तैयार है। एक छोटे-से हिस्से ने उसे रोक रखा है। शहर में ट्रैफिक की लगातार बढ़ रही दिक्कत से निपटने में यह ब्रिज अहम भूमिका निभाता। वाल सिटी की लाइन डोरी के प्रस्ताव बार-बार स्थाई समिति में आते हैं और निजी हित की डोरियों पर लटके रह जाते हैं। समितियों में प्रस्तावों को लंबित रखने की लंबी सूची है, जिसे मनपा सचिवालय में खोजा जा सकता है।
इस बार का मामला इसलिए खास हो गया कि गटर समिति ने उस प्रस्ताव को मुल्तवी रखा, जिसका काम बजट में भी शामिल नहीं था। इससे पहले शायद ही ऐसे अवसर आए हों, जब देश की बात हो या गुजरात की, बजट में शामिल नहीं किए गए बड़े प्रोजेक्ट्स पर अमल की कवायद हुई हो। सूरत मनपा के करीब दो हजार करोड़ रुपए के कैपिटल कामों में इन दोनों प्रस्तावों का जिक्र नहीं था। विपक्ष के समक्ष नतमस्तक होकर सत्तापक्ष पहले ही कर वृद्धि की दरों में भारी कटौती कर सूरत मनपा के अर्थतंत्र को बड़ी चोट दे चुका है। ऐसे में मनपा आयुक्त भी संबंधित विभागों को बजट में शामिल बेहद जरूरी कामों पर ही फोकस करने की मौखिक हिदायत दे चुके हैं।
मनपा के समक्ष जब आर्थिक संकट से उबरना चुनौती बना हो, बड़े प्रोजेक्ट्स खासकर वे जो बजट में भी शामिल नहीं हो, उनके लिए आर्थिक प्रबंध पहले करने की जरूरत है। गटर समिति चेयरमैन ने यही तो किया था। अमित सिंह राजपूत जिस समाज से आते हैं, शहर विकास में उसका बड़ा योगदान है। शहर हित में उन्होंने इस प्रस्ताव को मुल्तवी ही रखा था, दाखिल दफ्तर नहीं किया था। समिति की बैठकें हर सप्ताह होती हैं।
इस बार 18 सितंबर को समिति की सामान्य बैठक प्रस्तावित ही थी। ऐसे में ऐन एक दिन पहले विशेषाधिकार के तहत बैठक बुलाना औचित्य पर सवाल खड़े कर रहा है। आम जन ही नहीं, राजनीति के जानकार भी यह सोचने को मजबूर हैं कि कहीं परदे के पीछे कोई बड़ा खेल तो नहीं चल रहा। मनपा में नेता शासक पक्ष और उपमहापौर का पद आमतौर पर शोभा का पद ही माना जाता है। अति महत्वाकांक्षा में उपमहापौर की यह कोशिश कहीं पिछले दरवाजे से सत्ता की दस्तक तो नहीं है?
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