यह तो थी जनता कर्फ्यू की वह उपलब्धि, जिसके लिए इसे आहूत किया गया था। इसकी सामाजिक उपलब्धियां कहीं ज्यादा बड़ी रहीं। बरसों बाद ऐसा मौका आया होगा, जब लोग बिना वजह दिनभर घर में बैठे और परिवार के लोगों ने आपस में संवाद किया। एक-दूसरे को समझा और समझाया। बीते पांच-सात साल में युवा हुई पीढ़ी तो स्मार्ट फोन में ऐसी उलझी है कि वह सामाजिक ताना-बाना भी भूल गई है। उसे खयाल ही नहीं कि परिवार के लोगों के साथ महीनों सार्थक बातचीत नहीं होती, जबकि आभासी दुनिया में दिन में दस बार उन लोगों के साथ संवाद होता है, जिनके साथ असल जिंदगी में कभी सामना भी नहीं हुआ हो। संवेदना के स्तर पर लोग अपने परिवार से जुडे, साथ बैठे और एक-दूसरे की भावनाओं को समझा।
आम दिनों में सुबह सवेरे भी चिडिय़ों की चहचहाहट सुनाई नहीं देती। प्रकृति प्रेमी जो जंगलों में नहीं जा पाते, स्मार्ट फोन पर इसे सुनकर कानों को तसल्ली दे लेते हैं। जनता कर्फ्यू में जब लोग घरों के दरवाजे तक बंद करके बैठे थे, पता चला कि प्रकृति का संगीत बचा रह गया है। चिडिय़ों की चहचहाहट जो सुबह के समय भी सुनने को नहीं मिलती, दिनभर सुनाई दी। खुले आसमान में मानव का दखल जैसे ही कम हुआ, चिडिय़ों के बहाने प्रकृति ने गुनगुनाना शुरू कर दिया। दोपहर बाद तक जब-जब चिडिय़ा चहचहाईं, कानों में मानो रस घुल गया। पर्यावरण परिवर्तन के खतरों से जूझ रही दुनिया के लिए यह संकेत है कि हम चाहें तो लुप्त होती प्राकृतिक विरासतों को बचा सकते हैं। वाहनों की रेलमपेल नहीं थी, इसलिए खुले आसमान के नीचे प्रदूषण का स्तर भी न्यूनतम था। वाहनों और आबादी का शोर भी नहीं था। यही वजह है कि पक्षियों ने दिनभर निर्बाध उड़ान भरी। यह ऐसी उपलब्धियां हैं जनता कर्फ्यू की जिनके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नहीं सोचा होगा। साथ ही संदेश भी कि हम नियमित अंतराल पर इसी तरह स्व पर नियंत्रण रखें तो परिवार के ज्यादा करीब बने रहेंगे। प्रकृति के बिगड़ते संतुलन को साधने के लिए गंभीर प्रयास करें तो पर्यावरण परिवर्तन के खतरों को न्यूनतम कर सकते हैं। पक्षियों को एक दिन खुला आसमान दें तो हमारी आने वाली पीढिय़ां लुप्त होते पक्षियों की पूरी बिरादरी को साकार देख सकेगी। बस एक कोशिश करनी होगी…। साथ ही कोरोना के खिलाफ जंग अभी मुकाम तक नहीं पहुंची है। इस टैम्पो को बनाए रखना है, जिससे कि हम तीसरे चरण में नुकसान को कम से कम करने में सफल हो पाएं।