हालांकि पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी बात जो सामने निकल कर आई है, वह है मौखिक तौर पर सारा खेल होना। कलक्टर ने जुबानी सहमति से सरकारी कमरा निजी लोगों को आवंटित कर दिया। डांग कृषि विकास सेल का खाता दूसरे जिले नवसारी में खुलना। पातली मंडली के डेढ़ लाख रुपए जमा होना और वापस कर देना। एक किसान की गाढ़े पसीने की कमाई से एक लाख रुपए डकार जाना। सरकारी तंत्र का खुलकर दुरुपयोग होना। डांग जिले का प्रशासनिक अमला मौन होकर-गर्दन हिलाकर तमाशा देखता रहा और फर्जी कम्पनी के कार्मिक कारगुजारियां करने में व्यस्त रहे।
चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि कलक्ट्री परिसर में एक साल तक कुछ लोग पूरे सिस्टम को कठपुतली की तरह हिलाते-डुलाते रहे और किसी के माथे पर शिकन तक नहीं पड़ी। दुबई में यूनिर्वसल रोबो इनोवेशन नाम से कोई कम्पनी है या नहीं, यह जानने की जहमत तक नहीं उठाई गई। पुलिस में मुकदमा दर्ज होने के बाद इस बेइमानी की परतें उधड़ीं, वरना न जाने कितने दिनों तक गोरखधंधा चलता रहता।
आखिर किसने सबके मुंह पर पट्टी बांध कर रखी थी? एक साल तक कैसे प्रशासन को खिलौना बनाकर आरोपी खेलते रहे? प्रशासनिक अधिकारियों की पैरवी के लिए पुलिस के बड़े अफसर को क्यों आगे आना पड़ा? डांग प्रशासन की इस नाकामी का सच सबके सामने आना जरूरी है, क्योंकि आरोपी डंके की चोट पर राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों पर आरोप मढ़ रहे हैं। खुलेआम बोल रहे हैं कि उनकी सरपरस्ती में उन्होंने सारे घपले-घोटाले किए।
डांग प्रशासन को यदि अपनी साख बचानी है और वहां की जनता में विश्वास की डोर मजबूत करनी है तो हर सवाल का जवाब उनको पूरी पारदर्शिता और तथ्यों को सामने रखकर देना होगा। तब कहीं जाकर आदिवासियों के कल्याण का काम ठीक से हो पाएगा।
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