डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन कलक्टर कण्णन गोपीनाथन ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में एपीसी (एयर पॉल्यूशन कंट्रोल) सिस्टम लगाने के ऑर्डर जारी किए थे, जिस पर अमल नहीं हुआ। प्रदेश में एक दर्जन से अधिक उद्योग वायु प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें इंगोट मैन्यूफैक्चिरिंग वाले उद्योगों की संख्या ज्यादा है। एपीसी सिस्टम से ऑटोमैटिक मीटर के जरिए प्रदूषण पर सीधी नजर रखी जा सकती है। पीसीसी ने गंभीर वायु प्रदूषण फैलाने वाले 11 इंगोट कंपनियां चिन्हित की थीं।
श्वसन रोगों के मरीज बढ़े
गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग बुधियाभाई जानिया बताते हैं कि 80 के दशक में खड़ोली गांव हरियाली में लिपटा था। 1990 के बाद गांव में प्रदूषित औद्योगिक इकाइयां स्थापित होने लगीं और तब से गांव में लोग दमा, विकलांगता, हृदय, किडनी की बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं। वनस्पति खत्म होने से गांव में मवेशियों के लिए चारे की कमी हो गई है। खेती लायक जमीन बंजर हो गई है। जमीन में भूजल समाप्त हो गया और गांव के किसान खेती छोड़कर उद्योगों में नौकरी करने लगे हैं।
सतमालिया में मंडराता खतरा
खड़ोली औद्योगिक विस्तार में स्थापित इकाइयों से सतमालिया अभयारण्य के वन्यजीव व वन्य सम्पदा भी लगातार खतरा मंडराता रहता है। खड़ोली औद्योगिक विस्तार से सतमालिया महज 100 मीटर की दूरी पर है। इन कंपनियों से उत्सर्जित विषैली गैस सतमालिया अभयारण्य के लिए खतरा बन गई है। सतमालिया में 400 से अधिक संवेदनशीन वन्य प्राणी हैं। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्रवाई के लिए वन्यजीव अधिकारी भी चुप हैं।