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Air pollution News; रेड केटेगरी वाले खड़ोली औद्योगिक क्षेत्र की हवा हुई जहरीली

locationसूरतPublished: Feb 05, 2020 06:02:04 pm

Submitted by:

Sunil Mishra

जहरीले प्रदूषण से आसपास के लोगों का जीना हुआ दुश्वारएयर पॉल्यूशन कंट्रोल नियमों के प्रति उद्यमियों में उदासीनताखेती लायक जमीन बंजर हो गई

Air pollution News; रेड केटेगरी वाले खड़ोली औद्योगिक क्षेत्र की हवा हुई जहरीली

Air pollution News; रेड केटेगरी वाले खड़ोली औद्योगिक क्षेत्र की हवा हुई जहरीली

सिलवासा. प्रदेश के खड़ोली औद्योगिक विस्तार में स्टील प्रगलन एवं प्रदूषित हवा से लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। उद्योगों से लगातार जारी प्रदूषण से हवा जहरीली हो गई है और वातावरण में जहरीली गैसों के विसर्जन से आसपास बसे परिवार पलायन को मजबूर हो गए हैं।
सिलवासा-खानवेल मार्ग पर खड़ोली गांव में रेड केटेगरी के उद्योगों का जाल फैला है। यह उद्योग हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड व दमघोटू गैस घोलते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि स्टील प्लांट प्रदूषण नियंत्रण नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। उद्योगों में लौह पिघलाने वाली भट्टी जलते समय कंपनी में प्रदूषण नियंत्रक मशीन (चिमनी) बंद रहती है, जिससे भट्टी से उत्सर्जित काला धुआं वातावरण में सीधे जहर घोल रहा है। यहां एक दर्जन स्टील प्लांट हैं, लेकिन प्रदूषण के नियमों का कोई पालन नहीं करता है। गांव वालों ने बताया प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग दिन में बंद रखकर रात को चलाते हैं, ताकि प्रदूषण के बारे में पता नहीं चल सके।
ग्रामीणों का आरोप है कि प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियां राजनेता व प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (पीसीसी) अधिकारियों की जेब भर देती हैं। इससे पीसीसी के अधिकारी मौके का निरीक्षण भी नहीं करते हैं। गांव के लोग पीसीसी में शिकायत करते थक गए हैं।

एपीसी का अभाव
डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन कलक्टर कण्णन गोपीनाथन ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में एपीसी (एयर पॉल्यूशन कंट्रोल) सिस्टम लगाने के ऑर्डर जारी किए थे, जिस पर अमल नहीं हुआ। प्रदेश में एक दर्जन से अधिक उद्योग वायु प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें इंगोट मैन्यूफैक्चिरिंग वाले उद्योगों की संख्या ज्यादा है। एपीसी सिस्टम से ऑटोमैटिक मीटर के जरिए प्रदूषण पर सीधी नजर रखी जा सकती है। पीसीसी ने गंभीर वायु प्रदूषण फैलाने वाले 11 इंगोट कंपनियां चिन्हित की थीं।
श्वसन रोगों के मरीज बढ़े
गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग बुधियाभाई जानिया बताते हैं कि 80 के दशक में खड़ोली गांव हरियाली में लिपटा था। 1990 के बाद गांव में प्रदूषित औद्योगिक इकाइयां स्थापित होने लगीं और तब से गांव में लोग दमा, विकलांगता, हृदय, किडनी की बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं। वनस्पति खत्म होने से गांव में मवेशियों के लिए चारे की कमी हो गई है। खेती लायक जमीन बंजर हो गई है। जमीन में भूजल समाप्त हो गया और गांव के किसान खेती छोड़कर उद्योगों में नौकरी करने लगे हैं।
सतमालिया में मंडराता खतरा
खड़ोली औद्योगिक विस्तार में स्थापित इकाइयों से सतमालिया अभयारण्य के वन्यजीव व वन्य सम्पदा भी लगातार खतरा मंडराता रहता है। खड़ोली औद्योगिक विस्तार से सतमालिया महज 100 मीटर की दूरी पर है। इन कंपनियों से उत्सर्जित विषैली गैस सतमालिया अभयारण्य के लिए खतरा बन गई है। सतमालिया में 400 से अधिक संवेदनशीन वन्य प्राणी हैं। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्रवाई के लिए वन्यजीव अधिकारी भी चुप हैं।
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