इस दौरान आरपीएफ के सामने एक यात्री पहुंचा। उसे एस -16 कोच का टिकट दिया गया था, लेकिन ट्रेन में वह कोच ही नहीं था। काफी खोजने के बाद भी जब वह कोच नहीं ढूंढ पाया तो आरपीएफ के पास पहुंचा। किसी तरह उसे अन्य डिब्बे में चढ़ाया गया।
बताया गया है कि डिब्बे के बारे में उद्घोषणा की गई थी, लेकिन समस्या यह रही कि डिब्बों की स्थिति की जानकारी देने वाले इंडीकेटर तीन नंबर प्लेटफार्म पर नहीं हैं। साथ ही ट्रेन आने के समय यात्रियों के भारी कोलाहल के बीच यह घोषणा भी लोग नहीं समझ पाए। इससे ट्रेन आने पर उन्हें परेशानी उठानी पड़ी।
सोमवार को यहां से रवाना हुई बांद्रा-पटना ट्रेन में विकलांग और महिला कोच भी नहीं था। इससे इन यात्रियों के लिए भी बहुत परेशानी खड़ी हो गई। आरपीएफ की मानें तो भारी भीड़ के कारण कई महिलाओं ने यात्रा ही नहीं की या भीड़ भरे डिब्बे में मजबूरी में किसी तरह चढ़ी।
प्लेटफार्म नंबर तीन पर इन दिनों शेड बनाने का काम चल रहा है। इसके कारण कई जगहों पर पिलर के लिए गड्ढे खोदे गए हैं। इससे प्लेटफार्म पर आने जाने की जगह भी कम हो गई है। ट्रेन आने के बाद डिब्बे में चढऩे के लिए दौड़ लगा रहे यात्रियों को इससे भारी दिक्कत हुई। कोई यात्री दुर्घटनाग्रस्त न हो इसके लिए आरपीएफ और जीआरपी ने काफी मशक्कत की।
बांद्रा-पटना ट्रेन में कोच की स्थिति बदलने के कारण सोमवार को यात्रियों के बीच भारी अफरा-तफरी मची थी। इस ट्रेन में यात्रियों को बिठाने के लिए भी बहुत लोग आते हैं। इससे समस्या और बढ़ जाती है। आरपीएफ ने यात्रियों को सुरक्षित और सुचारू रूप से डिब्बे में बिठाने का पूरा प्रयास किया गया था। होली से पहले का आखिरी फेरा होने के कारण भीड़ बहुत अधिक थी और लोग किसी भी स्थिति में डिब्बे में चढऩे की कोशिश में थे। ट्रेन के रवाना होने के बाद प्लेटफार्म पर काफी जूते चप्पल भी पड़े दिखे।
एचके चौहाण, आरपीएफ पीएसआई