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कहत कबीर कुछ उद्यम कीजे, आप खाए दूजन को दीजे

locationसूरतPublished: Jul 19, 2018 10:05:47 pm

‘सांई इतना दीजिए जा मे कुटुंब समाय/ मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय’.. संत कवि कबीर के इस दोहे में परोपकार के लिए…

Say Kabir some venture, you should eat

Say Kabir some venture, you should eat

सूरत।‘सांई इतना दीजिए जा मे कुटुंब समाय/ मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय’.. संत कवि कबीर के इस दोहे में परोपकार के लिए सर्वशक्तिमान से ‘इतना’ ही देने का आग्रह किया गया है। सूरत के रुस्तमपुरा में चार सौ साल पुराने कबीर मंदिर में किसी से कोई दान लिए बिना सेवा कार्य किया जाता है। मंदिर की ओर से आयुर्वेदिक अस्पताल, गौशाला के संचालन के अलावा संतों के लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था है तो छात्रों को पढ़ाने का कार्य भी किया जा रहा है।

मंदिर के देवेन्द्र दास ने बताया कि जो भी सेवा कार्य करो, खुद की कमाई से करो। इसी का अनुसरण करते हुए हम किसी प्रकार के दान की मांग नहीं करते। कामरेज में गलतेश्वर के निकट भी मंदिर की जमीन है। वहां २०-२५ संतों द्वारा खेती की जाती है। उससे होने वाली आय को सेवा कार्यों पर खर्च किया जाता है।

सभी सेवाएं निशुल्क और हर किसी के लिए उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि कबीर ने आडम्बरों से दूर रहने की हिदायत दी है। उन्होंने जीवन में गुरु के महत्व पर विशेष जोर दिया है। इसलिए मंदिर में गुरु की पूजा की जाती है। नियमित सत्संग होता है। भाद्रपद पूर्णिमा को पूर्व मंहत और गुरु सत्यारामदास की स्मृति में विशेष कार्यक्रम होता है। गुरुवार को कबीर जयंती गलतेश्वर के निर्माणाधीन कबीर मंदिर में मनाई जाएगी।

मुगल बादशाह ने दी थी मंदिर के लिए जमीन

एक दंत कथा के मुताबिक ४०० साल पहले एक योगी संत विचरण करते हुए रुस्तमपुरा आए थे। उस वक्त मंदिर के स्थान पर एक बगीचा था। संत आराम करने के लिए चादर बिछा कर सो गए। बादशाह के आने का समय होने के कारण सैनिक बगीचा खाली करवाने लगे। उनके कहने पर संत तो चले गए, लेकिन उनकी चादर वहीं छूट गई। सैनिकों ने चादर हटाने की कोशिश की, लेकिन वह उसे नहीं हटा पाए। उन्होंने इस बारे में बादशाह को बताया तो बादशाह ने संत से मिलने की इच्छा प्रकट की। सैनिक उन्हें ढूंढ कर दरबार में ले गए। बादशाह ने उन्हें अपनी व्याधियों के बारे में बताया। संत के उपचार से वह ठीक हो गया। उसने संत के कहने पर हिन्दू मंदिरों में घंटा बजाने पर लगाया गया प्रतिबंध हटा दिया तथा रुस्तमपुरा बगीचे की जमीन संत को दे दी। संत ने वहां कबीर मंदिर का निर्माण करवाया और बाद में वहीं समाधि ली।

एक हजार से अधिक लोग जुड़े हैं मंदिर से

मंहत देवेन्द्र दास ने बताया कि हजार से अधिक लोग मंदिर से जुड़े हैं, जो सत्संग में आते हैं। सेवाओं का लाभ कई लोग लेते हैं। शहर में पांच और कबीर मंदिर हीरा बाजार दरिया मोहल्ला, लाल दरवाजा गुंदी शेरी, रामपुरा, सणिया हेमद गांव और बेगमपुरा खांगड शेरी में हैं। सबका प्रबंधन अलग-अलग है। राम कबीर मंदिर ट्रस्ट से कई लोग जुड़े हैं, जिन्हें भक्त कहा जाता है। उन्होंने बताया कि देश और दुनिया में कबीर पंथियों की संख्या के बारे में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अलग-अलग धर्मों के लोग कबीर की शिक्षा का अनुसरण करते हैं। मोटे तौर पर माना जाता है कि दस लाख लोग कबीर पंथ से जुड़े हुए हैं।

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