ऐसा लगता है कि एक साल बाद लॉकडाउन एक बार फिर से ज्यादा ताकतवर होकर लौटा है। जिले के कई इलाके कंटेनमेंट जोन में डाल दिए हैं। शाम के समय पुलिस के वाहन घूम-घूम कर जनता से सहयोग की अपील करते दिखते हैं और बाद में बिना मास्क पहने लोगों को सबक भी सीखा रहे है। रात 8 बजे बाद सड़क पर सिर्फ एक्का-दुक्का वाहन ही दिखते हैं, उन्हें भी कड़ी पूछताछ के बाद ही आगे बढऩे दिया जाता है। रात 8 बजे से सवेरे 6 बजे तक लगे कफ्र्यू से लोगों में दहशत फैल गई है कि यदि अब नहीं संभले तो फिर स्थिति ज्यादा बिगड़ सकती है। इधर, वे लोग काफी मायूस हैं, जिनकी रोजी-रोटी शाम के कारोबार से चलती है।
आदिवासी गांवों में फैला कोरोना पिछले साल की अपेक्षा कोरोना के नये स्ट्रेन ने गांवों में भी जमकर कहर बरपाया है। दूर-दराज के खानवेल, रूदाना, आंबोली, खेरड़ी, दपाड़ा, दुधनी, मांदोनी के आदिवासी गांवों में भी कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। इन क्षेत्रों की सीमाएं महाराष्ट्र से लगी हुई है। महाराष्ट्र के पालघर और डहाणु में संपर्क से गांवों में संक्रमण बढ़ा है। जिले में कोरोना से मरने वालों की संख्या सिर्फ एक दर्शाइ गई है, जिस पर लोगों को विश्वास नहीं रहा। शहरवासियों का कहना है कि यहां कोरोना संक्रमित हुए व्यक्ति की मौत का कारण हकीकत छिपाकर दूसरी बीमारी बताई जाती है।