कोरोना को लेकर लोगों में बहुत गलतफहमियां हैं। सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि वास्तव में कोरोना जैसी कोई चीज है ही नहीं। लोग इस प्रौपेगेंडा में फंस जा रहे हैं कि कोरोना जैसा कुछ भी नहीं है। इस वजह से कई तरह की भ्रांतियां पैदा हो रही हैं। अशिक्षित लोग भी इसके शिकार हैं। स्वास्थ्य के जानकारों का कहना है कि लोगों में अब भी डर नहीं हैं, वे कोविड नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं जिससे महामारी की चपेट में आने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
महामारी कोरोना ने संपूर्ण दुनिया को भले ही झकझोर कर रख दिया लेकिन दादरा नगर हवेली के देहातों में उसका खौफ कहीं नजर नहीं आता। गांवों के आदिवासी बुनियादी सुविधाओं को पाकर ही स्वयं को निहाल समझने वाले लोग अलबत्ता कोरोना से बेफिक्र हैं। महाराष्ट, सीमा से लगे गांवों के आदिवासी अपनी रोजी रोटी के लिए जंगली संपदा के एकत्रण, पशुधन पालन, महुआ के बीज, पत्ते आदि चुनने घरों से निकल जाते हैं, तथा देर शाम को घर लौटते हैं। कौंचा निवासी वंशा माढ़ा ने बताया कि कोरोना महामारी शहरों की है। गांवों में लोग मेहनत करके गुजारा करते हैं, इससे लोगों को कोरोना से कोई तालुक नहीं है। गांव के लोग खेती, पशुधन और नौकरी पर आश्रित हैं। वे सोशल डिस्टेंस, मास्क जैसी कोई पाबंदियों से अनभिज्ञ हैं।