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Patrika Exclusive : कर्ज और परेशानियों के आगे जिन्दगी हो गई छोटी!

locationसूरतPublished: Mar 07, 2018 11:16:24 pm

सूरत शहर समेत दक्षिण गुजरात में रोजाना तीस घरों में पसर रहा मातम…

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सूरत. बीते दिनों दक्षिण गुजरात की कुछ घटनाओं ने सबको स्तब्ध कर दिया। औद्योगिक नगरी भरुच में जहां परेशानियों के बोझ तले एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और पुत्री की जान लेने के बाद खुद का भी गला काट लिया तो सूरत शहर में 12 साल के मासूम और जीवनसंगिनी के साथ हाईराइज बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। इसी तरह से कर्ज नहीं चुकाने पर शहर के एक व्यापारी ने विषाक्त पदार्थ खा लिया। यह व्यापारी अब भी मौत से लड़ रहा है। इन सभी मामलों को गौर से देखें तो साफ पता चल जाएगा कि कर्ज और परेशानियों के आगे जिन्दगी का मोल इतना सस्ता हो गया है कि मौत ज्यादा आसान लगने लगती है। देश के गोल्डन कॉरिडोर में सूरत शहर और दक्षिण गुजरात का नाम भले आर्थिक प्रगति के पथ पर गर्व के साथ लिया जाता है, मगर इसका स्याह पक्ष इतना डरावना है कि प्रतिदिन औसतन तीस लोग समय से पहले अपनी जिन्दगी को खत्म कर लेते हैं। यह आंकड़ा इसलिए भी सबको चौंकाता है कि मरने की वजह जिन्दगी से संघर्ष करने से कहीं ज्यादा आसान लगती हैं।
जीवन में आस्था को नहीं समझा

आत्महत्याओं को रोकने के लिए सूरत में शुरू की गई जीवन आस्था हेल्पलाइन के आंकड़े काफी भयावह तस्वीर को बता रहे हैं। संस्था की ओर से 2013 में शुरू की गई इस हेल्पलाइन पर अब तक 13 हजार से भी अधिक लोगों के फोन कॉल आ चुके हंै। जो अपनी विभिन्न परेशानियों के चलते जिंदगी से पूरी तरह से हताश हो चुके थे। अंतिम विकल्प के रूप में जीवन को ही खत्म करने का विचार कर रहे थे। हेल्पलाइन की ओर से उनकी समस्याओं को समझ कर हर संभव मदद देने का प्रयास किया गया। समस्या खत्म होने पर कई लोग इरादा बदल देते हैं, लेकिन जिन लोगों की परेशानी खत्म नहीं होती। वे आखिरकार इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं।
रिश्ते , कर्ज और परीक्षा

हेल्पलाइन की सुपरवाइजर योगिता भरुची ने बताया कि प्रतिदिन औसतन 30 कॉल आते हैं। इनमें से ८० फीसदी लोग अपने निजी व पारिवारिक रिश्तों में खटास से परेशान होते हैं। वहीं 15 फीसदी कर्ज के चलते लेनदारों से परेशान होते हैं। पांच दस फीसदी परीक्षा, नौकरी, बीमारी समेत अन्य कारणों की वजह से आत्महत्या करना चाहते हंै। बोर्ड परीक्षाओं के दौरान परीक्षार्थियों के कॉल अधिक आते हंै, लेकिन परिणाम आने के साथ ही इनकी संख्या कम हो जाती है।
नोटों के फेर में उलझे लोग

आर्थिक विशेषज्ञ सीए संजीव जैन ने बताया कि पैसा कमाने की चाह ने लोगों की आर्थिक गणित को गड़बड़ा दिया है। एक सामान्य परिवार का खर्च महीने के 20 से 25 हजार रुपए में चल जाता है। पर शौक और स्टेटस को पूरा करने की लत के चलते परिवार का मुखिया कर्ज के ऐसे दलदल में घंस जाता है, जहां से उसे निकलने का रास्ता नहीं मिलता और मौत आसान लगती है। इतना ही नहीं, वह अपने पूरे परिवार को भी असमय मौत के आगोश में ले जाता है, ताकि तकाजा करने वाले उनके पीछे नहीं पड़े। जब इतना सबकुछ डरावना करने का मन-विचार वह बना सकता है तो नोटों के फेर में उलझने जितनी मामूली बात क्यों नहीं समझ पाता। यदि व्यक्ति सही ढंग से प्लानिंग करके काम करें तो ऐसी नौबत ही नहीं आए।
पारिवारिक और सामाजिक दबाव भी बड़ा कारण

समाजविद् अमित सिंहल ने बताया कि ज्यादातर घटनाएं ऐसे परिवारों की सामने आ रही है जो समाज में आर्थिक रूप से समृद्ध दिखते हैं। अच्छा मकान, कार, लक्जरी संसाधनों से लबरेज लोग की सबको चौंका देते हैं। यकायक उनके आस-पास रहने वाले लोग की समझ ही नहीं पाते कि हंसता-ख्ेालता पूरा परिवार पल भर में उनके बीच नहीं रहा। इसके पीछे के कारणों को टटोलेंगे तो साफ नजर आएगा कि सामाजिक और पारिवारिक दबाव के ये शिकार बने हैं। शौक और लत को पूरा करने की अंधाधुंध दौड़ में कब सब चौपट हो गया, इस सच से दूर हो जाते हैं। लोगों को यह समझाना होगा कि तनाव युक्त जिन्दगी को सही ढंग से चलाने के लिए तनाव मुक्त सोच भी विकसित करनी होगी।
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