जीवन में आस्था को नहीं समझा आत्महत्याओं को रोकने के लिए सूरत में शुरू की गई जीवन आस्था हेल्पलाइन के आंकड़े काफी भयावह तस्वीर को बता रहे हैं। संस्था की ओर से 2013 में शुरू की गई इस हेल्पलाइन पर अब तक 13 हजार से भी अधिक लोगों के फोन कॉल आ चुके हंै। जो अपनी विभिन्न परेशानियों के चलते जिंदगी से पूरी तरह से हताश हो चुके थे। अंतिम विकल्प के रूप में जीवन को ही खत्म करने का विचार कर रहे थे। हेल्पलाइन की ओर से उनकी समस्याओं को समझ कर हर संभव मदद देने का प्रयास किया गया। समस्या खत्म होने पर कई लोग इरादा बदल देते हैं, लेकिन जिन लोगों की परेशानी खत्म नहीं होती। वे आखिरकार इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं।
रिश्ते , कर्ज और परीक्षा हेल्पलाइन की सुपरवाइजर योगिता भरुची ने बताया कि प्रतिदिन औसतन 30 कॉल आते हैं। इनमें से ८० फीसदी लोग अपने निजी व पारिवारिक रिश्तों में खटास से परेशान होते हैं। वहीं 15 फीसदी कर्ज के चलते लेनदारों से परेशान होते हैं। पांच दस फीसदी परीक्षा, नौकरी, बीमारी समेत अन्य कारणों की वजह से आत्महत्या करना चाहते हंै। बोर्ड परीक्षाओं के दौरान परीक्षार्थियों के कॉल अधिक आते हंै, लेकिन परिणाम आने के साथ ही इनकी संख्या कम हो जाती है।
नोटों के फेर में उलझे लोग आर्थिक विशेषज्ञ सीए संजीव जैन ने बताया कि पैसा कमाने की चाह ने लोगों की आर्थिक गणित को गड़बड़ा दिया है। एक सामान्य परिवार का खर्च महीने के 20 से 25 हजार रुपए में चल जाता है। पर शौक और स्टेटस को पूरा करने की लत के चलते परिवार का मुखिया कर्ज के ऐसे दलदल में घंस जाता है, जहां से उसे निकलने का रास्ता नहीं मिलता और मौत आसान लगती है। इतना ही नहीं, वह अपने पूरे परिवार को भी असमय मौत के आगोश में ले जाता है, ताकि तकाजा करने वाले उनके पीछे नहीं पड़े। जब इतना सबकुछ डरावना करने का मन-विचार वह बना सकता है तो नोटों के फेर में उलझने जितनी मामूली बात क्यों नहीं समझ पाता। यदि व्यक्ति सही ढंग से प्लानिंग करके काम करें तो ऐसी नौबत ही नहीं आए।
पारिवारिक और सामाजिक दबाव भी बड़ा कारण समाजविद् अमित सिंहल ने बताया कि ज्यादातर घटनाएं ऐसे परिवारों की सामने आ रही है जो समाज में आर्थिक रूप से समृद्ध दिखते हैं। अच्छा मकान, कार, लक्जरी संसाधनों से लबरेज लोग की सबको चौंका देते हैं। यकायक उनके आस-पास रहने वाले लोग की समझ ही नहीं पाते कि हंसता-ख्ेालता पूरा परिवार पल भर में उनके बीच नहीं रहा। इसके पीछे के कारणों को टटोलेंगे तो साफ नजर आएगा कि सामाजिक और पारिवारिक दबाव के ये शिकार बने हैं। शौक और लत को पूरा करने की अंधाधुंध दौड़ में कब सब चौपट हो गया, इस सच से दूर हो जाते हैं। लोगों को यह समझाना होगा कि तनाव युक्त जिन्दगी को सही ढंग से चलाने के लिए तनाव मुक्त सोच भी विकसित करनी होगी।