अनिल यादव को सूरत सेशन कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के लिए दोषी करार देते हुए 31 जुलाई, 2019 को फांसी की सजा सुनाई थी। उसने सेशन कोर्ट के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने भी सेशन कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए उसकी फांसी की सजा को बरकार रखा था। इसके बाद सेशन कोर्ट ने उसके खिलाफ डेथ वारंट जारी करते हुए 29 फरवरी को उसे अहमदाबाद की साबरमती जेल में फांसी देने के लिए डेथ वारंट जारी किया था। डेथ वारंट जारी होने के बाद अनिल ने जेल प्रशासन के जरिए कानूनी मदद मांगी थी, जिस पर सरकार ने उसकी पैरवी के लिए एक अधिवक्ता को नियुक्त किया है। 14 फरवरी को उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर की थी। गुरुवार को अनिल की ओर से अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश करते हुए कहा कि अभियुक्त के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 60 दिन का समय हो तब डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता। इस दलीलों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनिल यादव की फांसी की सजा पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में लिंबायत निवासी अनिल यादव ने पड़ोस में रहनेवाली तीन साल की बच्ची का अपहरण कर लिया था और अपने कमरे में ले जाकर उससे बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी थी। सेशन कोर्ट ने 290 दिनों में सुनवाई पूरी करते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई थी।