आइएसआइओ की ओर से विश्व के 140 स्मार्ट शहरों में क्लीयरिटी ऑफ विजन, लीडरशिप, बजट, प्रोविजन ऑफ फाइनेंसियल इनिसेटिव, सपोर्ट प्रोग्राम, पीपुल सेंट्रिक अप्रोच, डवलपमेंट ऑफ एन इनोवेशन इकोसिस्टम, इम्प्लीमेंटेशन ऑफ स्मार्ट पॉलिसी आदि का अध्ययन किया गया। इसके बाद वर्ष 2018-19 के लिए रैकिंग जारी की गई।
बारिश के साथ बढ़ा जहरीले जीवों का खतरा
बारिश के दौर में गांवों और शहर में जहरीले जीवों का खतरा बढ़ गया है। गांवों में जहरीले जीवों के केस ज्यादा हैं। प्रदेश में विषैले व विषहीन सांपों की कई प्रजातियां मौजूद हैं। मानसून में खेतों में काम करने वाले किसान सर्पदंश के शिकार हो जाते हैं। उपजिला अस्पताल खानवेल के प्रभारी डॉक्टर गणेश वरणेकर ने बताया कि अस्पताल में आने मरीज विषहीन सर्पदंश के ज्यादा शिकार हैं। मानसून में सर्प जमीन से बाहर आ जाते हैं। यह जहरीले जीव चूहे, छिपकली, छोटे कीट, मेंढक आदि को अधिक शिकार बनाते हैं।
यहां ड्रायोफिस नेेस्टस और क्राइसोफिलिया ओरनेटा दोनों प्रजातियों के विषहीन सर्प जंगलों में बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी अधिकतम लम्बाई 5 से 7 फीट तक होती है। यह अक्सर पेड़ों पर लटके रहते हैं तथा हरी पत्तियों को चूसते रहते हैं। पेड़ों पर आने वाले कीट, पतंगों को अपना शिकार बनाते हैं। जब यह किसी पशु, पक्षी और मनुष्य को डसते हैं तो इनके जहर का असर नहीं होता है। यहां ओरन प्रजाति के सर्प भी मिले हैं, जिनमें जहर नहीं होता है। श्री विनोबाभावे सिविल अस्पताल में जहरीले जीवों से बचाने के पुख्ता इंतजाम हैं।
यहां ट्रोमा में जहरीले जीवों के माह में कई केस आ जाते हैं। वन अधिकारी किरण परमार ने बताया कि जंगलों में पहले सेंड बोआ की दर्जनों प्रजातियां विचरण करती थी, जो लुप्तावस्था में पहुंच गई हैं। जंगलों खेतों के प्लॉट बन जाने से सर्पों की आबादी घटी है। प्रदेश में ग्रीन बैंबू पिट वाइपर, रसल वाइपर, धारीदार करैत, कोबरा एवं रसल करैत आदि विषधारी सर्प खूब पाए जाते हंै। ग्रीन बैंबू पिट वाइपर के शरीर का रंग पेड़ पौधों की पत्तियों जैसे हरा होने के कारण पेड़ पौधों को शरण स्थली बना लेता है। डॉक्टरों के अनुसार वाइपर और करैत का 6 माइक्रोग्राम विष किसी को भी मौत की नींद सुला सकता है। मानसून में आदिवासी खेतों में काम करते हैं, जिससे सर्पदंश के मामले तेजी से बढ़े हैं। सर्पदंश के मरीज को इंट्रामस्कुलर एवं एंटीवेनम के साथ डेकाड्रॉन की डोज दी जाती है।