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Surat / कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला : एक छत के नीचे नहीं रहने के बावजूद घरेलू हिंसा हो सकती है

locationसूरतPublished: Jan 23, 2022 05:13:27 pm

कोर्ट ने अलग रह रही ननद और जेठ – जेठानी की शिकायत में से नाम रद्द करने की मांग खारिज की, कोर्ट ने ऑनलाइन सुनवाई के बाद माता – पुत्री को भरण पोषण के तौर पर प्रतिमाह 6 हजार रुपए चुकाने का पति को आदेश दिया

Surat / कोर्ट ने सुनाया  महत्वपूर्ण फैसला : एक छत के नीचे नहीं रहने के बावजूद घरेलू हिंसा हो सकती है

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सूरत। घरेलू हिंसा के एक मामले में कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। एक ही छत के नीचे नहीं रहने पर भी घरेलू हिंसा हो सकती यह मानते हुए कोर्ट ने अलग रह रही दो ननद और जेठ – जेठानी की शिकायत में से नाम रद्द करने की मांग खारिज कर दी।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि घरेलू हिंसा मामले में लिप्तता सीधे हो यह जरूरी नहीं है। कई बार बाहर से भी कान भर कर घरेलू हिंसा के लिए उकसाया जा सकता है। इस मामले में कोर्ट ने विवाहिता और उसकी पुत्री के भरण पोषण के लिए प्रतिमाह 6 हजार रुपए चुकाने का पति को अंतरिम आदेश भी दिया। उधना क्षेत्र निवासी विवाहिता की शादी 14 फरवरी, 2013 को कतरगाम निवासी युवक के साथ हुई थी। उन्हें एक छह साल की पुत्री हैं। दांपत्य जीवन के दौरान पति – पत्नी के बीच झगड़ा होने लगा और मनमुटाव के चलते पत्नी पीहर में रहने आ गई। वर्ष 2019 में विवाहिता ने अधिवक्ता अश्विन जे.जोगड़िया के जरिए कोर्ट में पति समेत ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ कोर्ट में घरेलू हिंसा कानून के तहत भरण पोषण याचिका दायर की थी। हालांकि कोरोना महामारी के कारण कोर्ट में फिजिकल सुनवाई बंद हो गई थी। कोरोना की दूसरी लहर में दोबारा ऑनलाइन अर्जी कर अंतरिम तौर पर भरण पोषण के लिए कोर्ट से गुहार लगाई थी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट में माता – पुत्री के भरण पोषण के लिए प्रतिमाह 6 हजार रुपए चुकाने का अंतरिम आदेश पति को दिया। दूसरी ओर विवाहिता की दो ननद और जेठ – जेठानी ने वे अलग रहते है और इस मामले से उनका कोई लेना देना नहीं यह बताते हुए कोर्ट में अर्जी दायर कर उनका नाम केस से रद्द करने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता जोगडिया ने दलीलें पेश की कि फोन से या अन्य तरीके से भी बात कर घरेलू हिंसा के लिए उकसाया जा सकता है। सिर्फ अलग रहते हो इस वजह से केस में से नाम रद्द नहीं किया जा सकता। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने नाम रद्द करने की मांग वाली याचिका नामंजूर कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ननद , जेठ – जेठानी भले ही एक छत के नीचे रहते न हो, लेकिन उनका अपने माता – पिता के घर आना जाना रहता है। घरेलू हिंसा के मामले में लिप्तता सीधे हो यह जरूरी नहीं नहीं है। कई बार अन्य तरह से भी उकसा कर घरेलू हिंसा की जा सकती है।
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