अधिकांश निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षा को व्यापार बना रखा है। विद्यार्थियों के भविष्य की संचालकों को चिंता नहीं होती है। बस संचालकों का महज एक ही उद्देश्य अभिभावकों से पैसे वसूलना रहता है। यह तो सब जानते है कि स्कूल फीस के नाम पर करोड़ों रुपए वसूल लेता है। साथ ही प्रवेश के समय डोनेशन के माध्यम से भी करोड़ों रुपए बना लेता है। पर शहर के कई स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने प्रवेश के समय अभिभावकों से विद्यार्थी की जमानत के तौर पर उनसे डिपोजिट जमा करवाई।
अभिभावकों ने शहर के एक स्कूल के खिलाफ विद्यार्थियों की जमानत और सुरक्षा के लिए डिपोजिट वसूले जाने की शिकायत की। शिकायत मिलने पर पहले एफआरसी के अधिकारी चौक गए। जांच करने पर पता चला कि अभिभावक की शिकायत सच है। इसके बाद अन्य स्कूलों की भी जांच की गई तो सामने आया कि कई स्कूल ऐसे हैं जो विद्यार्थियों के प्रवेश के लिए डिपोजिट वसूलते हैं।
स्कूल संचालक प्रवेश के समय डोनेशन के अलावा डिपोजिट भी वसूलते हैं। यह रकम 10 हजार से लेकर 30 हजार रुपए तक है। यह रकम विद्यार्थी के स्कूल में रहने तक उनके पास जमा रहती है। एलसी लौटाते समय डिपोजिट वापस की जाती है। एक स्कूल में औसत तीन हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं। सबकी डिपोजिट की गिनती की जाए तो स्कूल एक समय में अच्छी खासी रकम वसूल लेता है।
शहर के ज्यादातर स्कूल में जूनियर से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं हैं। इसलिए प्रवेश के समय जमा करवाई जाती डिपोजिट 14 साल तक स्कूल के पास ही जमा रहती है। हर साल नए प्रवेश होने से इस रकम में लगातार बढ़ोतरी होती जाती है।
डिपोजिट के नाम पर करोड़ों रुपए जमा होने पर उसका तगड़ा ब्याज भी स्कूल को मिलता रहता है। स्कूल खर्च बढऩे की दुहाई देकर प्रति साल फीस बढ़ाई जाती है। एफआरसी की ओर से तय फीस को भी मान्य नहीं रखते हैं। आज भी स्कूल मनमानी फीस वसूलते हैं।
गुजरात राज्य के शिक्षा नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि प्रवेश के समय विद्यार्थियों की सुरक्षा और जमानत के तौर पर स्कूल को डिपोजिट लेनी चाहिए। स्कूल पैसा वसूलने के लिए मनमाने नियम बनाते हैं। स्कूलों पर नियंत्रण नहीं होने के कारण अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता रहता है।
प्रवेश के समय जमानत के तौर पर स्कूल ने अभिभावकों के पास डिपोजिट जमा करवाई होने की शिकायत मिली है। इस शिकायत पर जांच की तो पता चला कि शिकायत सही है। स्कूल को तुरंत डिपोजिट की रकम वापस करने का आदेश दिया गया है। ऐसा अन्य स्कूल भी कर रहे हैं।
– जगदीश चावड़ा, सूरत एफआरसी सदस्य