-चंद वर्ष में बढ़ा था कारोबार टेंट-शामियाने के कपड़ा व्यापारी और उनका व्यापार सूरत कपड़ा मंडी में सात-आठ साल पहले तक सौ-पचास व्यापारियों तक सीमित था और देशभर में भी मात्र 10 फीसद कपड़ा ही यहां से बिकता था। समय बदला और स्थिति यह आ गई कि कोरोना से पहले तक देशभर में बिकने वाला टेंट-शामियाने का 90 फीसदी कपड़ा सूरत कपड़ा मंडी का होता था। उस दौरान यहां दो सौ से अधिक व्यापारियों का कम से कम प्रतिदिन का 10 लाख मीटर कपड़ा उत्पादन होता था, मगर आज स्थिति इसकी 10 से 15 प्रतिशत पर आ गई है और व्यापारियों की संख्या भी घट रही है।
-गणपति महोत्सव और 100 करोड़ का कारोबार पिछले वर्ष के समान इस वर्ष भी महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में गणपति महोत्सव सार्वजनिक स्तर पर मनाए जाने की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आ रही है। गणपति महोत्सव के दौरान अकेले महाराष्ट्र में एक सौ करोड़ का कपड़ा बिक जाता था जो इस बार 5-7 फीसद भी मुश्किल लग रहा है। साल की शुरुआत में कोरोना की वजह से शादी-ब्याह समेत अन्य बड़े आयोजन नहीं हो पाए और अब नवम्बर में थर्ड वेव की आशंका से बाहरी मंडियों के कपड़ा व्यापारी डरे हुए है, ऐसे में स्थानीय व्यापारियों को इस बार 400 करोड़ के नुकसान की आशंका है।
-व्यापार स्विच, महंगी दुकानें छोड़ी व्यापार के अभाव में सूरत कपड़ा मंडी के आलीशान रघुबीर बिजनेस एम्पायर मार्केट में क्रिकेट व बेडमिंटन खेलकर चर्चा में आ चुके कपड़ा व्यापारी अब यहां से दुकानें भी खाली कर रहे हैं। उसकी वजह में किराया व खर्चे अधिक बताया जा रहा है, वे यहां से अब सारोली कपड़ा बाजार में बने नए टैक्सटाइल मार्केट की सस्ती और लुभावने ऑफर वाली दुकानों में व्यापार जमा रहे हैं। वहीं, कई व्यापारियों ने टेंट-शामियाने के कारोबार को स्विच कर अपने पुराने शुटिंग-शर्टिंग, रेडिमेड गारमेंट्स के कारोबार में हाथ आजमाने शुरू कर दिए है।
-एक्जीबिशन में भी नहीं गए टेंट-शामियाने के कपड़ा कारोबारियों की कोरोना की वजह से कैसी हालत होगी, इसका अंदाजा उनकी सर्वाधिक पसंदीदा एक्जीबिशन में गैरमौजूदगी से लगाया जा सकता है। नई दिल्ली में प्रतिवर्ष ऑल इंडिया टेंट एक्जीबिशन लगती है, लेकिन अभी किसी को रुचि नहीं है।
देवकुमार संचेती, प्रमुख, सूरत मंडप क्लॉथ एसोसिएशन। -तकलीफों का दौर लगातार जारी टेंट-शामियाना व्यावसायियों के लिए गतवर्ष से तकलीफों का दौर लगातार जारी है। प्रतिदिन 10 लाख मीटर कपड़ा उत्पादन घटकर लाख-डेढ़ लाख रह गया। केवल इतने मात्र से ही व्यापारिक मुश्किलों को समझा जा सकता है।