सूरत

SURAT KAPDA MANDI: सैकड़ों पार्सलों का रोजाना हो रहा ‘पलायनÓ

-व्यापारिक स्तर पर लगाम लगाने की हरसंभव होती है हर बार कोशिश मगर नहीं मिलती है कामयाबी-गुड्स रिटर्न का कड़वा सच…स्थानीय व्यापारी और एजेंट के साथ-साथ बाहरी मंडी के व्यापारी बड़े जिम्मेदार-सूरत कपड़ा मंडी में प्रत्येक व्यापारिक सीजन के बाद आती है जीआर की विषम व्यापारिक परिस्थिति

सूरतJun 27, 2022 / 09:14 pm

Dinesh Bhardwaj

SURAT KAPDA MANDI: सैकड़ों पार्सलों का रोजाना हो रहा ‘पलायनÓ

सूरत. जीआर याने सिरदर्द…। भले ही पढऩे में अजीब लगे, लेकिन यही सच है। सूरत कपड़ा मंडी के सैकड़ों-हजारों कपड़ा व्यापारियों के लिए व्यापारिक सीजन में माल की बढिय़ा बिकवाली और उसके एक-डेढ़ महीने बाद भेजे माल की गुड्स रिटर्न के रूप में मानों घरवापसी। यह परिस्थिति कपड़ा व्यापारियों को ना केवल व्यापारिक नुकसान पहुंचाती है बल्कि उनका मनोबल भी तोड़ देती है। हाल के दिनों में सूरत कपड़ा मंडी इसी बुरे दौर से गुजर रही है जब रोजाना सैकड़ों की संख्या में कुछ समय पहले ही बाहरी मंडियों के कपड़ा व्यापारियों को भेजा गया माल जीआर याने सिरदर्द के रूप में वापस पहुंच रहा है।
सूरत कपड़ा मंडी के जानकार व्यापारियों की मानें तो गुड्स रिटर्न किसी परिस्थिति में नहीं आएगा, ऐसा नहीं है बल्कि भेजे गए माल का डेढ़ से ढाई प्रतिशत कपड़े की किन्हीं कारणों से वापसी संभव रहती है। मगर मौजूदा हालात में पिछले लग्नसरा सीजन की ही बात करें तो जीआर के रूप में 10 से 15 प्रतिशत माल की वापसी हो रही है जो कि सूरत कपड़ा मंडी और उसके कपड़ा कारोबार के लिए कतई उचित नहीं है। जीआर के रूप में माल वापसी का नुकसान कपड़ा व्यापारियों के लिए छोटा-मोटा नहीं होता बल्कि इसमें जानकारों के मुताबिक 15 से 20 प्रतिशत रकम टूट जाती है। ऐसी स्थिति में यूं कहें तो बेहतर होगा कि खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना…।


-जीआर पर लगाम, करें यह कुछ उपाय


प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपए का नुकसान सूरत कपड़ा मंडी के व्यापारियों को जीआर के रूप में भुगतना पड़ता है। इस नुकसान से बचने के लिए उन्हें कुछ खास उपाय करने चाहिए, जो कि मंडी के कई व्यापारियों द्वारा किए भी जाते हैं।

-स्थानीय व्यापारी


निजी शर्तों पर करें कपड़ा व्यापार।
ऑर्डर के मुताबिक ही माल की डिस्पेचिंग।
-जीआर की स्थिति में कड़ाई से कार्यवाही।


-एजेंट


-सप्लायर की जानकारी बगैर ऑपन माल नहीं बेचे।
-सूरत में चलता है…इस मानसिकता से व्यापार छोड़े।
-दोनों पक्ष के बाजार के नियंत्रक के रूप में भूमिका निभाए।

-बाहरी मंडी के व्यापारी


-पोर्टल पर जांचे किसका और कैसा आ रहा है माल।
-अतिरिक्त सप्लाय रिसीव नहीं करें और उसकी दें सूचना।
-खपत के मुताबिक ही माल का ऑर्डर करें।


-मेला-स्कीम से भी व्यापार में मेलापन

सूरत कपड़ा मंडी के जानकार व्यापारी बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष मई-जून और नवम्बर-दिसम्बर में जीआर की समस्या आती है और इसके पीछे लग्नसरा व दीपावली सीजन में बाहरी मंडियों में भेजी गई हैवी सप्लाय कारण रहती है। इसके अलावा देशभर के बड़े-बड़े शहरों में एजेंसियों के मार्फत होने वाले मेला-स्कीम को भी जीआर की बड़ी वजह होने से नकारा नहीं जा सकता। मेला-स्कीम में अच्छी बिकवाली के तौर पर सैकड़ों-हजारों पार्सल की बुकिंग और माल की डिस्पेचिंग होती है, लेकिन बाद में नहीं बिका माल भी वैसे ही लौटता है।

-सख्त व्यापारिक नियम आवश्यक


सूरत कपड़ा मंडी को गुड्स रिटर्न अर्थात जीआर के व्यापारिक दूषण से बचाने के लिए जरूरी हो जाता है सभी कपड़ा व्यापारी सख्त व्यापारिक नियमों के साथ ही व्यापार करें। जीआर का बड़ा आर्थिक व व्यापारिक नुकसान हर साल झेलना पड़ता है।

नरेंद्र साबू, प्रमुख, सूरत मर्कंटाइल एसोसिएशन।


-अपने कपड़ा माल की बनाए इज्जत


डिमांड से भी कम सप्लाय के साथ सभी कपड़ा व्यापारी अपने कपड़ा माल की इज्जत स्वयं बनाए। इसके अलावा सूरत में चलता है…इस मानसिकता से दूरी बनाकर कपड़ा व्यापार करें क्योंकि जीआर में केवल और केवल हमें ही नुकसान होता है।

किशन गाडोदिया, कपड़ा व्यापारी, मिलेनियम-2 मार्केट


-25 प्रतिशत माल को होता है नुकसान


गुड्स रिटर्न की स्थिति में स्थानीय कपड़ा व्यापारी का पैकिंग चार्ज बिल्कुल खत्म हो जाता है और लौटे माल की कीमत भी घट जाती है। लोट-सोट में इसे बेचना पड़ता है और इसमें 25 प्रतिशत तक माल का नुकसान व्यापारी को भुगतना पड़ता है।

राजीव ओमर, कपड़ा व्यापारी, रघुकुल टेक्सटाइल मार्केट।


-ट्रांसपोट्र्स के लिए मुश्किल हालात


बाहरी मंडियों से जीआर के रूप में लौटने वाले माल को सुरक्षित रखने की बड़ी जिम्मेदारी के साथ ट्रांसपोट्र्स को अन्य कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो माल ट्रांसपोर्ट गोदाम में पड़ा-पड़ा खराब भी हो जाता है।
किरण जैन, ट्रांसपोर्ट व्यवसायी।

-ट्रांसपोर्ट में यूं ही हो जाता है खराब


जीआर मामले में व्यापारिक विवाद भी खूब पैदा होते हैं और इसके चलते बाहरी मंडी के व्यापारी का वापस भेजा गया माल कई बार ट्रांसपोर्ट्र्स के यहां महीनों नहीं बल्कि साल-सालभर यूं ही पड़ा-पड़ा खराब हो जाता है। यह परिस्थिति कपड़ा कारोबार में सबसे ज्यादा प्रतिकूल गिनी जाती है। इसके अलावा घरवापसी वाले माल को स्थानीय व्यापारियों को पहले जैसी कीमत भी नहीं मिलती और उन्हें आधी-अधूरी कीमत पर इसे लोट-सोट में बेचना पड़ता है। ऐसे हालात सूरत कपड़ा मंडी के सभी छोटे-बड़े व्यापारियों को देखने पड़ते हैं।
-इनकी बनती है बड़ी जिम्मेदारी


जीआर के रूप में माल की घरवापसी में सही तौर पर स्थानीय कपड़ा व्यापारी, एजेंट व बाहरी मंडी के व्यापारी को जानकार 30-30 व 40 प्रतिशत के रूप में जिम्मेदार गिनते हैं। बाहरी मंडी के व्यापारी की अधिक जिम्मेदारी इसलिए बताई गई है कि अगर उसके पास ऑर्डर से अतिरिक्त माल पहुंच रहा है तो उसे वह ट्रांसपोर्ट में लोडिंग होने से पहले रोक सकता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है और थोड़े लोभ-लालच से बड़ा नुकसान स्थानीय व्यापारियों को जीआर के रूप में भुगतना पड़ जाता है।

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